शब्दालंकार सवैया – ब्रह्मानंद स्वामी

या मगरी मग री तगरी, नगरी न गरी सगरी बगरी हे;
वाट परी डगरी डगरी, खगरी खगरी कगरी अगरी हे;
सीस भरी गगरी पगरी, पगरी घुघरी उगरी भु गरी हे;
ब्रह्ममुनि द्रगरी दगरी, लगरी लगरी फगरी रगरी हे।।
में अटकी अटकी नटकी, चटकी चटकी मटकी फटकी हु;
घुंघटकी घटकी रटकी, लटकी लटकी तटकी कटकी हु;
ज्यों पटकी थटकी थटकी, खटकी खटकी हटकी हटकी हुं;
ब्रह्म लज्यो झटकी झटकी, वटकी वटकी जटकी जटकी हुं।।
जोबनमें खनमें दिनमें, घनमें तनमें कनमें मनमें जूं;
माखनमें खनमें न नमें, धनमें धनमें उनमें गनमें जूं;
आपनमें पनमें रनमें, छनमें छनमें जनमें अ नमें जूं;
ब्रह्ममुनि फनमें थन, मेडनमें भनमें भनमें चनमें ज्यूं।।
मुखपें अलके झलके, ललके व्रजत्रिय मीलकें कलके कलके ही;
कुंडलके तलके चलके मनु, मिन मिनहुके बलके हलके ही;
नारी चली जलके छलके, गलके नलके वलके दलके ही;
ब्रह्ममुनि पलकेफलके भलके, सलके डलके ढलके ही।।
नहीं बात पहांनयकी पयकी, लयकी लयकी वयकी वयकी री;
या तयकी तयकी अयकी, मयकी मयकी भयकी भयकी री;
हे गयकी गयकी गयकी सयकी, सयकी बयकी बयकी री;
जो खयकी कयकी कयकी, कहे ब्रह्ममुनि जयकी जयकी री।।
आंखु बरी खुबरी लुबरी दुबरी, दुबरी बुबरी गुबरी हे;
हे जुं बरी जुबरी, छुबरी डुबरी डुबरी उबरी तुबरी हे;
में बुबरी थुबरी मुबरी कुबरी, कुबरी कुबरी कुबरी हे।।

-ब्रह्मानंद स्वामी (लाडुदानजी आसिया)

Author: Jabbardan B. Gadhavi (JB)

Tumhare bas me agar hai to bhul jao hame...