मीर उस्मान अली: देश की खातिर खजाने खोलने वाला निजाम!

 

उस मुल्क की सरहदों को कोई छू भी नहीं सकता… जिस ​मुल्क के ​लोग उसे मुसीबत में देखकर अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हों!

ये बात उस दौर की याद दिलाती है… हिंद की जमीन पर विदेशी हमले का खतरा बढ़ रहा था और प्रधानमंत्री के कहने पर एक निजाम ने अपना खजाना भारत की रक्षा के लिए खोल दिया था.

1965 में हैदराबाद के निजाम ‘मीर उस्मान अली’ नाम था उस दानी का!

पैसों के मामले में भारत की सेना के लिए इतना बड़ा दान शायद ही किसी ने किया होगा.

तो चलिए जानते हैं उस किस्से को जिसने ‘मीर उस्मान अली’ को ‘मोहसिन-ए-हिन्दुस्तान’ बना दिया–

एक टोपी में जिंदगी गुजारने वाला ‘रईस’ निजाम

मीर उस्मान अली हैदराबाद रियासत के अंतिम निज़ाम थे!

विश्व के सबसे धनी व्यक्तियों में शामिल उस्मान अली ने एक समय इटली के बराबर और इंग्लैंड व स्कॉटलैंड दोनों के बराबर बड़ी रियासत पर राज्य किया था.

उस समय उनकी कुल संपत्ति अमेरिका की कुल अर्थव्यवस्था का 2 प्रतिशत थी. इसी के चलते टाइम पत्रिका ने सन 1937 में उनकी फोटो अपनी मैग़ज़ीन के कवर पेज पर लगाई थी.

हैदराबाद के निजाम की संपत्ति का इसी बात से आंकलन किया जा सकता है कि वो 5 करोड़ पाउंड की कीमत वाले शुतुरमुर्ग के अंडे के आकार जितने बड़े एक हीरे को पेपरवेट के तौर पर इस्तेमाल करते थे. वहीं उनके पैलेस में करीब 6000 लोग काम किया करते थे, जिनमें से 38 लोग तो केवल मोमबत्ती स्‍टैंड की धूल ही साफ करते थे.

इतना सब होने के बाद भी उस्मान अली बेहद साधारण किस्म का जीवन-यापन करते थे. वह एक टिन की प्‍लेट में खाना खाते थे, वहीं अपने कपड़ों पर कभी प्रेस तक नहीं करवाते थे. कहा तो यहां तक जाता है कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी केवल एक ही टोपी पहनकर और एक ही पुराना कंबल ओढ़कर गुजार दी.

वहीं इनकी दरियादिली भी इस साधारण जीवन से ऊपर थी, उन्होंने ​बनारस हिंदू वि​श्वविद्यालय के लिए आर्थिक मदद मांगने के तुरंत बाद बिना देरी किए एक लाख रुपए दान कर दिए.

Mir Osman Ali Khan, ruler of Hyderabad. (Pic: nydailynews)

चीन बन चुका था खतरा!

1965 में भारत पाकिस्तान से युद्ध जीत चुका था और जीत के जश्न में डूबा था.

भारतीय इस जीत का जश्न अभी ठीक से मना भी नहीं पाए कि उनके सामने दूसरा खतरा चीन के रूप में खड़ा हो गया. तिब्बत को आजाद कराने के लिए चीन ने भारत को दादागिरी दिखानी शुरू कर दी और युद्ध तक की धमकी दे डाली.

ऐसे में भारत इस बात से चिंतित हो उठा.

भारत कुछ दिन पहले ही एक भयावह युद्ध से गुजरा था. हालांकि युद्ध में हमारी जीत हुई लेकिन पुन: एक और युद्ध उस पर थोपा जाना कहीं से भी अनुचित था. हालांकि सेना में जवानों की कमी अब भी नहीं थी. देश के युवा बड़ी संख्या में सेना में शामिल होने के लिए तैयार थे, लेकिन असली समस्या थी सेना के लाव-लश्कर, साजो-सामान और असलाह, गोला-बारूद की.

चूंकिे चीन की सेना पूरी तरह से युद्ध के लिए तैयार थी और यहां सैनिकों के हाथ खाली थे, वहीं देश विभाजन का दर्द झेल रहा था और पाकिस्तान से युद्ध के चलते भारत सरकार के पास धन की भी कमी थी. ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सेना की मदद के लिए भारतीय रक्षा कोष की स्थापना की.

शास्त्री जी ने लोगों से सेना के लिए दान करने की अपील की. इस अपील ने लोगों को देश भावना से ओत-प्रोत कर दिया और वो देश सेवा के लिए टूट पड़े, आम नागरिक जो हो सकता था दान करने में जुट गए. जिसके पास पैसा नहीं था वह कपड़े और भोजन दान कर रहा था.

यहां तक की लोग रक्तदान करने तक उमड़ पड़े, ताकि सैनिकों के इलाज में मदद मिल सके लेकिन ये काफी नहीं था.

Lal Bahadur Shastri. (Pic: oldindianphotos)