पानीपत का तीसरा युद्ध: 18वीं शताब्दी की सबसे विनाशक लड़ाई

 

इतिहास ने हमें बहुत कुछ दिया है… कुछ बहुत अच्छा, तो कुछ बहुत बुरा!

जहां अपने किस्सों से इतिहास ने हमें गौरवान्वित किया है, तो वहीं कुछ किस्से हमारे दिल में नासूर बन कर रह गए हैं.  इतिहास ने अपने आंचल में इसी तरह के एक किस्से को सहेज रखा है, जिसे सुनते ही धमनियों में बहते रक्त की गति सामान्य से कहीं अधिक हो जाती है.

यह घटना थी 18वीं सदी में लड़े गए सबसे विनाशकारी युद्धों में से एक पानीपत का तीसरा युद्ध, जिसने एक दिन में हज़ारों योद्धाओं को काल का ग्रास बना दिया. तो आइये जानते हैं इस विनाशक युद्ध से जुड़े कुछ पहलुओं को–

आखिर क्यों, कब और किसके बीच लड़ा गया युद्ध!

अठारहवीं सदी की शुरुआत हो चुकी थी, औरंगज़ेब की मृत्यु के उपरांत वर्षों से भारत की ज़मीं पर सीना ताने खड़ा मुग़ल साम्राज्य अब घुटनों पर आ चुका था. दूसरी तरफ मराठाओं का भगवा परचम बुलंदी पर लहरा रहा था. पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में राजपुताना, मालवा अथवा गुजरात के राजा मराठों के साथ आ मिले थे.

मराठों के लगातार आक्रमणों ने मुग़ल बादशाहों की हालत बदतर कर दी थी. उत्तर भारत के अधिकांश इलाके, जहां पहले मुग़लों का शासन था, वहां अब मराठों का कब्ज़ा हो चुका था. 1758 में पेशवा बाजीराव के पुत्र बालाजी बाजी राव ने पंजाब पर विजय प्राप्त कर मराठा साम्राज्य को और अधिक विस्तृत कर दिया, किन्तु उनकी जितनी ख्याति बढ़ी, उनके शत्रुओं की संख्या में भी उतनी ही बढोत्तरी हुई.

इस बार उनका सीधा सामना अफगान नवाब अहमद शाह अब्दाली के साथ था. अब्दाली ने 1759 में पश्तून अथवा बलोच जनजातियों को एकत्रित कर सेना का संगठन किया. साथ ही पंजाब में मैराथन की छोटी-छोटी टुकड़ियों से लड़ते हुए विजय प्राप्त की. इसी तरह अब्दाली अपनी सेना के साथ आगे बढ़ता रहा. अंततः 14 जनवरी 1761 को पानीपत में अब्दाली के नेतृत्व में अफगान सेना व मराठों के मध्य 18वीं सदी का सबसे भयावह युद्ध लड़ा गया.

मराठा साम्राज्य का विस्तार

सन 1707 के बाद छत्रपति शिवाजी द्वारा देखा गया सम्पूर्ण भारत पर मराठा साम्राज्य के अधिपत्य का स्वप्न अब पूर्ण होता प्रतीत हो रहा था. 1758 में मराठाओं ने दिल्ली सहित लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया तथा तैमुर शाह दुर्रानी को वहां से खदेड़ दिया. अब मराठा साम्राज्य की हदें उत्तर में सिंधु एवं हिमालय तक अथवा दक्षिण में प्रायद्वीप के निकट तक बढ़ गयी थीं.

यह मराठों की सर्वोच्च उपलब्धि थी. उन दिनों मराठा साम्राज्य की कमान पेशवा बाजीराव के पुत्र बालाजी बाजीराव के हाथों में थी. बाला जी ने अपने पुत्र विश्वास राव को मुग़ल सिंहासन पर बैठाने का मन बना लिया था. अभी तक नाममात्र के लिए दिल्ली पर मुगलों का शासन था और वे सभी मराठों के विस्तृत होते हुए साम्राज्य को देख कर भयभीत थे.

Maratha Soldiers (Pic : Edu)

अहमद शाह अब्दाली का भारत आगमन

1758 में पंजाब पर किए गए हमले के बाद लाहौर तक अपना कब्ज़ा करने के बाद मराठों ने तैमूर शाह दुर्रानी को खदेड़ दिया. तैमूर शाह अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था. अब्दाली को यह बात नागवार गुज़री अथवा उसने भारत पर हमले का मन बना लिया. सबसे पहले उसने पंजाब के उन जगहों पर हमला किया, जहाँ मराठा फौजें कम संख्या में थीं. उसके बाद वो अपने लश्कर के साथ आगे बढ़ा.

समय के साथ मुग़ल शासक दो भागों में बंट गए थे. एक वो जो भारतीय मुस्लिम थे, अथवा एक वो जो बाहर से आकर यहाँ शासन कर रहे थे. मराठा भारतीय मूल के मुसलमानों के पक्ष में थे. अब बाहरी मुसलमान शासक किसी विदेशी सहायता की प्रतीक्षा में थे, जो उन्हें अहमद शाह अब्दाली के रूप में प्राप्त हुई.

अहमद शाह ने पंजाब, कश्मीर अथवा मुल्तान पर कब्ज़ा ज़माने के बाद दिल्ली की राजनीति में अपनी दिलचस्पी दिखाई.

Ahamad Shah Abdali (Pic : Wikimedia)