mangalacharan

मगंलाचरण

सुरसत सरधा सूं जपूं गणपत लागूं पाय ।

ईसर ईस अराधवा सदबुध करो सहाय ।।

पहलो नाम प्रमेस रो जिण जग मंडियो जोय ।

तीन भुवन चो रज्जियो सुफल करेसी सोय ।।

भगत बछल मो दै भगत भांज परा सह भ्रम्म ।

मुझ तणा क्रम मेटवा कथुं तुहाला क्रम्म ।।

लागु हू पहली लुळे पीताम्बर गुरु पाय ।

भेद महारस भागवत पायो जास पसाय ।।

आळीणो हरि नाम जाण अजांण जपे जो जीहंा ।

सास्तर वेद पुरांण सर्व मही तत अक्खर सारं ।।

तोरा हू पूरा तवे सकू केम समराथ ।

चत्रभुज सह थारा चरित निगम न जाणै नाथ ।।

कथुं केम इ्र्रसर कहै खाण सकल प्रत खेत ।

वयण श्रवण ना मन वसु निगम अगोचर नेत ।।

पीठ धरण-धर पटटड़ी हर उत लेखणहार ।

तोई तोरा चरिता तणोए परम न लाधे पार ।

देव किसी उपमा दऊ ते षिरज्या सह कोय ।

तो सारिसो तूं हीज तूं अवर न दूजो होय।।

आभ विछूटा माणसां है धर झेलण हार।

धरणीधर धर छडिया एक तूझ आधार।।

जाळ टळे मन मळ जळे थावे निरमळ देह।

भाग हुवै तो भागवत साम्भळीयो श्रवणेह।।

हर हर करता हरख कर आळस मकर अंजाण

जीण पाणी सूं पिड रच पवन लपेटयो प्राण।।

हर हर कर परहर अवर हररो नाम रतन्न।

पांचू पांडव तारीया कर दागीयो करन्न ।।

हर हर करता हरख कर अरै जीव अणबूझ।

पारस लाधो ओ प्रगट तन मानव मझ तूझ।।

अेरे नर परहर अवर हर हर सूमर हीयाह ।

संत सुदमा सारखा क्रोडी धज्ज कीयाह।।

वाणी हरि बीसार कर वाचै आण कुवाणं।

पत मत छंडी पापणी जार विलूबी जाण ।।

नर हर बीसरजै नहीं आतम मूढ अजांण।

काळ सकळ जग काटवा कस ऊभो केवाण।।

अवध नीर तन अंजळी, टपकत सास-उसास।

हरी भजन बिण जात है अवसर ईसर दास।।

मूढ मती तू हंस-मन कर हर-सर विसराम ।

मर-मर धर पर फर मति उर धर गिरधर नाम।।

नारायण भज रे नरा अतरजामी अेक।

साई जो सवळौ हुवै अवळा हुवो अनेक।।

नारायण रा नाम सू भरियो रह भरपुर ।

दामोदर नै दाखवै दम हिक करै न दूर।।

नारायण रा नाम सु प्राणी कर लै प्रीत ।

ओघट बणिया आतमा चत्रभुज आसी चीत।।

नारायण रा नाम सु लोक मरत जो लाज।

बूड़ेला बुध बायरा जल बीच छोड़ जाहज।।

नारायण रा नाम री मोड़ी पड़ी पीछाण ।

केइ दिन बाळापे गया के दिन गया अजांण।।

नारायण रा नामं सू , प्राणी वाणी पोय ।

जम डाणी लागेे नही हाणी मूळ न होय।।

नारायण रो नाम नर नह लीधो नीरणाह।

वा जमवारो वोलीयो ज्यू जंगल हरणाह।।

नारायण भजीयो नहीं भजीया अवर भजन्न।

ज्यां तजीया मानव जलम सझीया तन्न असन्न।।

नारायण न बीसारजै नीत प्रत लीजै नाम ।

जे लाधो मीनखा जलम , कीजै उतम काम।।

नारायण हो तुझ नमॅा , इण कारण हरी अज्ज ।

जीण दिन ओ जुग छडहां तीण दीन तोसू कज्ज।।

नारायण रो नाम तो भूडा ही भलवाण ।

चोपड़ीया चंगो थये जेहड़ो तेहड़ो खाण।।

नारायण नारायणा तारण तरण अहीर।

चारण हो हरी गुण चवां सागर भरीयो खीर ।।

नारायण नारायणा फेरा काटण फन्द ।

चारण हो हरी गुण चवां सोनो अन्ने सुगन्ध।।

नाम समोवड़ को नहीं जप तप तीरथ जोग।

नामे पातक नासहीं नामे नासे रोग।।

अजामेळ जम दळ अगां विछूटो विखमी वार।

करते नारायण कहयो पूता हूत पुकार।।

वैद तणी वसावली कहो कि वाचण काम।

मिटै रोग आजम मरण निगम लियता नाम ।।

प्रभु भजता प्राणीया कीजै ढील न काय।

भर बत्था अथ काढजै , मंदर बळता माय।।

बोह न भूलू बापजी जे सिर छत्रजु होय।

कर जीहा लोयण श्रवण किसो सु आपै कोय।।

जीहा जप जगदीष्वर धर अतस में ध्यान।

करम बंध निकरम करण भव भाजण भगवान।।

राम जपता रे रिदा आळस म कर अजाण।

जे तू गुण जाणे नही पूछ तु वेद पुराण।।

जद जागैै तद राम जप सूता राम सभार।

उठत बैठत आतमा चलता राम चितार।।

राम नाम रसणा रटो वासर वेर अवेर।

अटक्या पछे न आवसी राम तणी मुख रेर।।

राम भणता रे रिदा , कह केता गुण होय।

मानै ठाकर जंग नवै पिसण न गजै कोय।।

राम सजीवण मत्र रट वयणा राम विचार।

श्रवण राम गुण सुण सदा नयणा राम निहार।।

राम नाम रटतो रहे , आठू पोहर अखंड।

सुमिरण सा सोदा नही निरख देख नवखण्ड ।।

राम भणै भण राम भण अवरा राम भणाय।

जिण मुख राम न उच्चरे जा मुख लोह जड़ाय।।

राम सजीवण मत्र रट आमय लगै न अगं ।

जेता दुख है जगत में सुजि ओखद श्रीरंग।।

राम मात पित महत गुरु राम सखा सुखदात।

राम सबधी बाधवा , राम सहोदर भ्रात।।

राम बिसारी क्यु रहयो रे मुरख मद अन्ध।

जिण दिन राम न जप्पियो वो दिन धुुुन्ध ।।

हिया म छंडै हरिभगत रसण म छंडे राम।

अतरजामी आपणो ठाकर है सह ठंाम।।

दाखै ईसरदासियो , कटक न होणा कीध।

राम राम रटता थका लक वभीसण लीध।।

रुड़ो करसी रामजी सह बाता श्रीरंग।

भगता पे भुधर धणी चाढण रुप सुचंग।।

जीह भणै भण जीह भण कंठ भणै भण कंठ।

मो मन लागो महमण , हीर पटोळै गंठ।।

चत्रभुज चरणां धार चित अलख अजोनी आख।

गोकुल गिरधर ग्यांन गह राम नाम मुख राख।।

सांई तू वड्डा धणी तूझ न वड्डा कोय।

तू जिन्ना सिर हाथ दे , सै जग वड्डा होय।।

साई सूं सै कुछ हुवै बंदा सू कछु नंाय।

राई सू परबत करै परबत राई मांय।।

आळसवां अज्जाणवां दिल खोटंतां दूर।

साहिब सांचां साधवा , है हाजरां हजूर।।

रहै विलंबे रामरस अलरस गिणे अलप्प।

अेह महाधू आतमा बे तीरथ अे तप्त।।

खुधा न भाजे पाणियां चखा न भाजे अन्न।

मूकत नही हर नांव बिन मानव साचै मन्न।।

नाम सुतीरथ नाम व्रत नाम सलोभो काम ।

अेको आखर ततफल जप जीहा श्री राम।।

आलम मोरा ओगणा साहिब तूझ गुणाह।

बूंद बिरक्खा रैत कण थाग न लाधेै ताह।।

दीह घणा माझळ दुनी रुळियो पेखण रुप।

माहव हिव प्रकास मो सिव ताहरो सरुप।।

न दे साद क्युं नाथजी साद दिये जो संत।

आपण नाम उलावता धेन ही कानं धरतं।।

मन पाखे ही महमहण चविये जीह चरित।

आतम पियां अंजाण ही अमर करै अमरत।।

राम भरोसो राखता आदण ईसरदास।

ऊकळता मंह ओरदै बंदा रख बिसवास।।

धारै तो साहब धणो करे विंलब न काय।

मार उपावे मेदनी मुहरत हेकण मांय।।

आतम व्हैसी अेकलो छुटत तन संगाथ।

साखी तिण दिन संखधर सुरग तणे पंथ साथ।।

भगतपाळ भगवंत भज धूपत रसणा धार।

चित निसदिन हर हर उचर सासो सास संभार।।

आठू पहर अनंत अत जप जीहा जगदीस।

केसव किसन किलांणकर अखिलनाथ कह ईस।।

पुरसोतम पूरण प्रभु राघव गिरधर रुप।

मुुरलीधर मोहन मुकंद भज लै त्रिभुवन भूप।।

बदरी टीकम परस बुध जग मोहन जैकार।

घणदाता आंनदघण श्रीपति स्त्रवणां धार।।

पलक निमिस नंहपातरै दाखै दीनदयाल।

धरणीधर हिरदै धरै गावै गुण गोपाळ।।

केसव कह कह सूतरिये नहं सोइये निरधार।

रात दिवस के सुमिरने कबहुक लगै पुकार।।

मनसा डाकण माहरे राघव काढ रुदाह।

वन जिणमें केहर वसै त्रासे म्त्रगला ताह।।

ओ अवसर नंह आवसे ईसर आखै अेह।

पुण रै हरिरस प्राणिया जलम सुफल कर जेह।।

कल्प वेद सास्तर कथे सिध साधक सह कोय।

अन बिन त्रपत न उपजे हरि बिन मुगति न होय।।

सच्च पियारो सांइया सांई सच्च सहाय।

साचां अगन न जाळही सच्चां सरप न खाय।।

भाग बडा तो राम भज देण जोग कछु देय।

अकल बडी उपकार कर देह धरयां फळ अेह।।

वाव चलण लागै करण सूरज सस खं लग्ग।

ईस जिकासू उपरै कोय न जांणै मग्ग।।

चंदा सूं गयो चानणो सूरज मंडल सोय।

जीव हरि रस जाचतां हरि सूं नातो होय।।

आतम आळस तज पहल ओळख आद विसन्न।

जेह मनोरथ मन झुरे करत संपूर किसन्न।।

ते ओळेही हर तणा , जे नर नाम जपंत।

से जमरापर तज सहज राधव सरण रहतं।।

राम जपंता राजश्री राम भणंतां रिद्व।

राम नाम संभारतै पामीजे नव निद्व।।

अेको नाम अनंत रो पेलै पाप प्रचंड।

जव- तिल जेतौ जाळनळ खोण दहै वन-खंड।।

ओगण म्हारा आपजी बगस गरीब नवाज।

जे कुळ पूत कपूत व्है चहे पिता कुळ लाज।।

गुण अवतार नाम

ø देवी वंदन}

{गाथा}

रिध सिध दियण कोयला रांणी

बाळा बीजमंत्र ब्रहमाणी।

वयण दिये मो अविरळ वाणी

पुणू कीत जिम सारंगवाणी।।

{छंद बेअक्खरी}

ब्रखभ कपिल हैग्रीव विसंभर

दतात्री हरि हंस दामोदर।।

राव-बैकुठ धनंतर रिक्खभ

गरुडारुढ विसन प्रसणीग्रभ।।

मच्छ कच्छ वाराह महमहण

नारसिंह वामन नारायण ।।

दुज्ज-राम रघु-राम दमोदर

क्रसन बुद्व कलकी करुणाकर ।।

बद्री वासक व्यास वेदां-बण

परम निरंजन मुकति सद पावण।।

बळि अवतार तुं ही बळि बधण

भगत तणा धरिया दुख भंजण।।

जग अवतार न मो जगदीसर

अनंत रुप धारण तन ईसर।।

तवां ज हरि अवतार तुम्हारा

सदगत लहि छुटै संसारा।।

चवतां चरित तुम्हारा चेतन

जगत नहीं पुनरपि मानव जन।।

अकळ अजन्म अलेख अप्रंप्रम

क्रम मम कटै तूझ कथतां क्रम।।

माहरा अक्रम मेटवा माधव

क्रम हूं कथिस तुहाळा केसव।।

नाम तुम्हाळो हो!घणनामी

सास उसास संभारिस स्वामी।।

रात दिवस हरि हदै रखाविस

आठू पहर अनंत उल्लाविस।।

मांडे पूजा तूझ महणमथ

सकळ सरीर करिस इम सुक्रियथ।।

गलका सिला सिला गोमती

मांडे बे संगम मूरति।।

साळगराम सिला सुध सेवसि

अग्गर चंदण धूप उखेविस।।

अंनत उर आरती उतारिस

सोळ प्रकार पूज संभारिस ।।

भाव भगत करतो जग भावन

पतित सरीर करिस मम पावन।।

सुजळ ज्ञान मंजन तन सारिस

ध््राम क्रम जप तप नेम बधारिस।।

चरण पवित्त करिस इम चत्रभुज

त्रिगुणनाथ आवे आगळ तुझ।।

जंघा पवित करिस हूं जटधर

न्रत करतो आगळ नाटेसर।।

इंद्रियां पवित्त करिस अप्रप्रमं

दमै ग्यान तूझ दयता दम।।

नभ कंठ निपाप करिस नरहर

धारै मुद्रा तूझ संखधर।।

उदर पवित हु करिस अपरमंपर

चरणाम्त्रत तव लेय चक्रधर।।

पावन रिदो करिस पुरुसोतम

संचे नाम तूझ श्री संगम।।

मन हूं पवित्र करिस हरि मोरो

टीकम ग्यान धरे उर तोरो।।

कर दुय पवित करिस सेवा कर

जोङे तूझ आगळ जगत गर।।

पवित खंभ हू करिस अेण पर

अंक दिवाय संख चक ऊपर।।

निपाप कंध इम करिस नरहरि

नमें तुझ चरणें पूहकर नभ।।

कंठ इम पवित करिस करुणाकर

गावे तूझ चरित गोपीवर।।

मुख इम पवित करिस अघ मंजण

भखे प्रसाद तूझ दुख भंजण।।

रसण निपाप करिस इम राघव

भणे तुझ गूण तारण दधि भव।।

दसण निपाप करिस दमोदर

आणंद हंसे तूझ गिरि उद्धर।।

अधर पवित करिस अहिवारण

मुळके भगति प्रेम मधु मारण।।

वांणी पवित करिस सीतावर

नित प्रत क्रीत प्रकासे नरहर।।

नासा विसन करिस इम निरमळ

प्रभु घूंटे तव चरणां परमळ।।

नैण निपाप करिस नारायण

पेखि रुप तुझ भगत परायण।।

स्त्रवण पवित करिस इम स्वामी

गुण तुझ कथा सुणै घणनामी।।

भ्त्रकुटि पवित करिस विसम्भर

धारै चंदण गोपी धरणीधर।।

मस्तक पवित करिस मधु सूदन

वंदै तूझ चरण जुग वंदन।।

लिलाङ निपाप करुं लखमीवर

माथै चाढ तुल्सी तण मंजर।।

तुचा पवित करिस दसरथ तण

चरच विलेप करै हर चंदण।।

काय निपाप करिस इम केसव

दंडवत करी तूझ दईतां दव।।

रोम रोम तव नाम रखाविस।

इम करतो हरि चरणां आविस।।

मनसा वाचा क्रमणा माही ।

नरहर तो विण राखिस नाही।।

विसै संसार तणा विसारिस

श्रीरंग गुण थारा संभारिस।।

मैं म्हारी इन्द्रि सह माधा।

बळि उद्धार विसै तो बांधा।।

नाम नाव हू चढियो जगन्रप

रखे हिव डोलूं रावण रिप।।

करो कृपा तव सेवा कीजै

लिवरावो तव नाम ज लीजै।।

पखै रजा कोई चलण न पामै

भगत वछळ पङियो जग भामै।।

राज तणी इंछा रघुराया

अखिल चराचर जीव उपाया।।

राज अग्या म्हारै सिरराखिस

भूधर तूझ तणा गुण भाखिस।।

घण दीहां विछट्यो घणनामी

साथ तम्हीणो त्रिभुवन स्वामी।।

भमतो राख हमें जग भावन

प्रेम भगत दो त्रिभुवन पावन।।

किसन राख हिव हूं-तो करतो

धरणीधर ममता मन धरतो।।

तूझ विसै मति दे धू-तारण

कूप संसार काढ सब कारण।।

फेरा घणा भवोभव फरतो

माधव राख जनमतो मरतो।।

नरायण तो सम को नांही

मूर ही भवन हुकम चे माहीं।।

ओ संसार असार अनामी ।

सरणै साहब राखौ सामी।।

पाप करंतो मो मन पापी।

ताहरै नाम जाय सब तापी।।

त्रिभुवननाथ नहीें तव तोलै।

बांह गहो अब ईसर बोलै।।

बिण अपराध विटंबतो राखो त्रिभुवन राय।

कर कूडा सास्तर कथन कर कूडा क्रम कोय।।

अेह पटंतर दाख अब भगता वच्छळ ब्रहम।

कीधा अम के तम किया ,धुर हरि पाप धरम्म।ं।

ताहरी इछा दीध ते जीवा आदि जनम्म।

तित कित हूता अम तणा केसव किसा करम्म।।

आदि था सूंइ ऊपना जग जीवन सह जीव।

ऊंच नीच घर अवतरण , दी क्यू वंस दईव।।

औ पड़पंच अमाप रो तू करता त्रीकम्म।

आपो पै अळगौ रही ,केक भळावै क्रम्म।

आपो पै हंुता अनंत आपयो ते अवतार।

पाप धरम क्युं पीड़वा लाया जीवा लार।।

अखिल तु हीज के को अवर बहुनामी बुझ्झब।

लेखो नहीं लक्ष्मीपति सम्वड़ प्राणी स्रब्ब।।

आदि तणो ज®वंा अरथ भांजे में मुझ भरम्म।

पेहला जीव परोटिया किया के पेलंा क्रम्म।।

अकरम करम उपाय कर जागविया ते जीव।

जगपत को जाणे नहीं गत थारी हय ग्रीव।।

खाणी च्यार खोहण धरा जाया जिण दिन जंत।

किधा किण पाखे करम उत्तम मध्धम अंत।।

किधा कुण पुगे किसन वडा सामही वाद।

आदि न को तो बिण अनंत आतम करम न आद।।

क्रमगत पुछा तो कनंा गोविंद हूंज गिंवार।

नाडे वसती डेडरी पूणे की समदा पार।।

केम हुओ इसर कहे किण जायो करतार।

ब्रहमा रुद्र विचार भ्रम नेहे जाणे निरंकार।।

छंद मोतीदाम

भ्रमाय विचारत इंद्र ब्रहम्म।

न पावत तोराय न पार निगम्म।।

प्रमेसर तोराय पाय पलोय।

कुराण पुराण न जाणत कोय।।

अधोखज अक्खर तुझ अभेव।

दिनकर चंद न जाणत देव।।

त्रणै-गुण तुझ न जाणत तंत।

अहीस सबद न जाणत अंत।।

वडा तत तुझ लहै न विचार।

परदर तुझ न पावत पार।।

भला मुनि तुझ न जाणत भेद।

विचित्रय तुझ म आखत भेद।।

दमोदर तुझ दसै दिगपाळ।

किताइक पार न जाणत काळ।।

उभै अणपार अगम्म अलेख।

लखम्मिय तुझ न जाणत लेख।।

महा तत तूझ न जाणत माह।

कियो तुझ केण आयो तुय काह।

अनीलोय नील कहंत असेस।।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

अलाह अथाह अग्राह अजीत ।

अमात अजात अजात अतीत।।

अरत अपीत असेत असेस।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

अनक न संक धंक न धीस।

न वास न बास न आस न ईस।।

निराळ निकाळ त्रिकाळ नरेस।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

अगम्म अछेह अपार अनोप।

अप्रम्म अलेख अगम्म अलोप।।

विराग न राग न वप्प न वेस।

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

कमाळ विसाळ भुपाळ किसन्न,

वडाळ भुजाळ उजाळ विसन्न ।।

मुणाल भुआळ छत्राळ महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस ।।

निमूळ निसाख निरंजण नाथ,

सरज्जण भुवण तीन सम्राथ।।

मुनिगण सेवक सूर महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

रहै रत ध्यांन अठच्यासी रिक्ख,

लहै नंह पार ब्रहम्मा लिख्ख।।

सहस्स मुखे जस भाखत सेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

कहै सनकादिक चारूंइ ऋीत,

पढै नित नारद धारिय प्रीत।।

सदा रत सेव खगेस सुरेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

अधोमुख ताप तपै मुनि-ईस,

रजो तम रंच धरै नहिं रीस।।

ध्रुव रवि चंद्र सुध्यान धरेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

सबे कुळ-मेरूय सात समंद,

उचारत नाम अहोनिस इंद।।

मुखां नित टेरत ब्रह्म महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

गोरी सुत जाप जपंत गणैस,

सदा मुनि ध्यान धरै सिव सेस ।।

वंदे मुनि चारण देव विसेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

अभंग अथाह अपे्रय अरूप,

छछोह बदन्न मदन्न सरूप ।।

मुखां नह मेल्है सेस महेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

कथे सुर नाम त्रितीस करोड़,

जपै नर नाम उभै कर जोड।।

पयंपत वास पियाळ पुरेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

हुवा रिक्ख खोज अठासी हजार,

वंदै जस वेद छ सास्त्र विचार।।

धियावत किन्नर यक्ष धनेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

चारिय वाणिय खाणिय चार,

वंदै जग जीव विचार विचार।।

लहै नंह पार कछु लवलेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

उभै रवि चंद्र किया तैं उजैस,

रम्यौ अकळंक सदा तूं रमेस।।

दधि- भव तारण तूं दरवेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

अहोनिस काग भुसंड आराध,

पढै तब नाम सदा प्रहलाद।।

जपै सुकदेव जिसा जोगेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

चतुर्भुज दाखै वेद चियार,

बदै मुख सास्तर वैण विचार ।।

गावै जस नित सकत्त गणेस,

आदेस आदेस आदेस आदेस।।

सपत पयांळ न सात समंद,

दसै द्रगपाळ न चंद दुडिं़द।।

सुमेर न सेस पहल्लां सोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

प्रथि-पुड़ डाळ न आभ प्रचंड,

भलो काय लोक महा ब्रहमंड।।

अजै सिव आदिय पाण अलोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

जन्म न दम्म न जीव न जंत,

अकम्म न कम्म न आदि न अंत ।।

सुदेस महेस न सेसे सरोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

मेट मुरलोक पेठो जळ मांह,

तठे इक अंड निपायो तांह।।

कियो धर- अंबर बारिय कोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

नव ग्रह थापण थीर सुनाम,

धरे केउ लोक अलोकिक धाम।।

महादत मोख समापण मोज,

हुतो ज हुतो ज हुतो ज हुतो ज।।

अनंत पराक्रम तूझ अनंत,

नही तुव आदि नही तुव अंत।।

नही तुव रूप नही तुव रेख,

नहीं तुव वप्प नहीं तुव वेख।।

नही तोंय जात नहीं तोय जांण,

नहीं तोड पिंड नहीं तोय प्रांण।।

नही तोय सार नहीं तोय सुद्ध,

नहीं तोय बाळ नहीं तोय ब्रद्ध।।

नहीं तूं जोग नहीं तूं जाप,

नहीं तूं पुण्प नहीं तूं पाप।।

नहीं तूं ध्रम्म नहीं तूं धाम,

नहीं तंू कं्रम्म नहीं तूं काम।।

नहीं तूं जीव नहीं तूं जम्म,

नहीं तूं देह नहीं तूं दम्म।।

नहीं तूं नार नहीं तूं नाह,

नहीं तूं धूप नहीं तूं छांह।।

नहीं तूं ठोड़ नहीं तूं ठांम,

नहीं तूं गोठ नहीं तूं गांम।।

नहीं तूं अन्न नहीं तूं आस,

नहीं तूं वन्न नहीं तूं वास।।

नहीं तो नैण नहीं तोय नास,

नहीं तूं स्त्रम्म नहीं तूं सास।।

नहीं तूं भ्रम्म नहीं तूं भास,

नहीं तूं अंध नहीं तूं जास।।

नहीं तूं गुज्ज नहीं तूं ग्यान

नहीं तूं दुज्ज नहीं तूं दंान ।।

नहीं तूं जींव नहीं तूं जंत ,

नहीं तूं आदि नहीं तूं अंत ।।

नहीं तूं काळ नहीं तूं क्रमम,

नहीं तूं ब्याळ नहीं तूं ब्रह्म।।

नहीं तूं देव नहीं तूं दैत,

नहीं तूं भेव नहीं तूं भैत।।

नहीं तूं विप्र नहीं तूं वैस,

नहीं तूं खत्रिय सुद्र न खैस।।

नहीं तूं मूळ नहीं तूं डाळ,

नहीं तूं पत्र नहीं तूं पराळ।।

नहीं तूं बाळ न ब्रद्ध न मूळ,

नहीं तूं थावर सुक्खम थूळ।।

नहीं तूं जीव चराचर जेथ,

नहीं तूं मंत्र न तंत्र न तेथ।।

नहीं तूं दीह नहीं तूं रात,

नहीं तूं भ्रात नहीं तुव जात।।

नहीं तोय जांण पिछांण जमार,

नहीं तोय साख संबंध संसार।।

नहीं तुव वित नहीं तुव वांण,

नहीं तुव खेत नहीं तुव खंाण।।

नहीं तुव नार पुरक्ख सनेह,

नहीं तुव दीरघ सुक्खम देह।।

प्रथी अप तेज अनील अकास,

नहीं तुझ सुन्न असुन्न निवास।।

प्रमेसर प्रांण-पुरक्ख प्रधांन,

गरब्भ जगत वेदांत गिनान।।

नहीं तोय मात नहीं तोय बाप,

आपेज आपे ज उपन्नो आप।।

मनच्छा बीज चलावे मूळ,

थयांे चर बेचर सुक्खम थूळ।।

विराट आकार निपाविय रूख,

दुई फळ जेण किया सुख दुक्ख।।

निपाविय रूप उभै नर नार

वधारिय जग्ग तणौ विसतार।।

किधो इके जीव किधो इक क्रम,

धरे इक पाप धरे इक ध्रम्म।।

सरज्जिय आप त्रिवीध संसार,

हुवो मज्झ आपज रम्मणहार।।

घडे सह आपज हूंता घाट,

बणाविय विस्व कियो वैराट।।

किताइक वार ब्रहम्माय कीध,

लीला अवतार किता तैं लीध।।

विसव्व निपाय कितीइक बार,

ब्रहम्मा हाथ दियो बोपार।।

आपोपिय इच्छा आप अलक्ख,

लिया अवतार चैरासीय लक्ख।।

हुवो दिग-मूढ ब्रहम्मा देख,

अजप्प्पा राखव रूप अलेख।।

सनक सनसतन भ्रात सुरीत,

चिताया ब्रह्मा हंस चरित।।

माया सब सांवट बाळ मुकंद,

सूतो वड़-पांन समाध समंद।।

उपन्नाय दानव दोय अजीत,

भाजै सह देव हुय भैभीत।।

पइट्ठा आण तुहाळी ज पूठ,

उबार बिसन्न कहै सुर ऊठ।।

प्रमेसर सांभळ देव पुकार,

विधूं सण सज्ज हुवो तिण बार।।

बिहा ई झोलिय हेकण बाथ,

निरोहर मांय कियो जुध नाथ।।

बिहूं मधु कीट जसा बळ बुद्ध,

जीत्या तैं दानव बाहुव-जुद्ध।।

दईतां आगळ देव दतार,

वचाविय देव किताइक वार।।

करेवा देव तणां केई कांम,

रयौ बिच देत महाजळ रांम।।

महागिड़ पैठ महाजळ मज्झ,

किता जुध कीध प्रथम्मी कज्ज।।

प्रथम्मीय जाती रेस पयळ,

दाढां गह राखीय दीन-दयाल।।

रखी धर वार किता तैं राम,

सझे हिरणाख विखे संग्राम।।

आकासे वार किता तैं आय,

विधू सिय त्रिपुर अम्त्रत वाव।।

वेदां राय वा’र करी कई बार,

सझे जुध कीध दईत संहार।।

विमोहिय रूप अगाध बणाय,

जटाधर काज दईत जळाय।।

किता तैं वार विखै कळपंत,

बांधी ले संग प्रथी बळवंत।।

हलाविय कैतिक बार हमल्ल,

मथ्यो महराणव हेकल-मल्ल।।

किता तैं वार लिया क्रिसन्न,

रिणायर रोळिय चउद रतन्न।।

मथ्यो तैं वार किता महरांण,

सुरा लिय अम्त्रत दीध सुजांण।।

दळै केई वार वडाळ दईत,

इंद्रापुर दीधोय सक्र अजीत।।

हणै नख वार किता हरणक्ख,

भवानीय भेरव दीधा भक्ख।।

पाळे पख बार किता वरदान,

सुणंतां सेवक आरत साव।।

दिया तैं वार किता वरदान,

थपे धू राजस अच्चळ थांन।।

पुकारां संत सुणै प्रतपाल,

दौडै़ उठ आतुर दीन दयाळ।।

रांखै तै वार किता गजराज,

महाबळि ग्राह हणै महाराज।।

दबा बळि वामन लीधो दांन,

उभै कर पैंड जमीं असमांन।।

बांधे तैं वार किता बळराव,

वगोविय दांणव कीध वणाव।।

भेदे तैं बार किता भूगोळ,

करंती आंणी गंग किलोळ।।

किताइक वार नरां सुख कीध,

दया कर देव त्रिविस्टप दीध।।

हुवा असुरांण तणा हलकार,

पुणे जमदग्गन मुक्ख पुकार।।

आयो केई बार फरस्स उपार,

सहस्सरबाहुव सैन संहार।।

खत्री बंस वार किताइक खेस,

रेणा लिय दीधी विप्रां रेस।।

जिपै तैं वार किता बळि जंग,

रखावण तात जनेताय रंग।।

धरे नर देह अजोध्या धांम,

राजा दसरथ्थ तणै घर रांम।।

बिहूं रघुवीर सोमित्र बुलाय,

सजै जग विस्वामिंत्र सहाय।।

सुबाहु मरीच ताड़िका संघार,

महारिख कीध निसंक मूरार।।

जनक्क तणै बळ आविय ज्याग,

भंग्यो धनु भीम भला सिय भाग।।

कियौ त्रय खंड भूतेस को दंड,

बेटो दसरथ्थ तणौ बळ-बंड।।

आयौ दिखं कोप स्त्रवंत अंगार,

तजै बळ चाप हुऔ दुज त्यार।।

व्हियौ वर व्याव उछाव विसेस,

धायै जंह देव दिनेस धनेस।।

कैकय मंथर कुबध किधैव,

सिया वन रांम लखण सिधेव।।

महा दिय मान करी गुह मीत,

तारै सिळ कीर कुटंब सहीत।।

विडरूप कीध सुपनखिय वन्न,

तदै खर-दूख वछोड़िय तन्न।।

हरी महम्माय धरयौ छळ-हाव,

मिळै हणवंत महाबळ माव।।

बिंधै सत ताड़ पमै कपि बोध,

जदै बिहुं भ्त्रात भिडै़ महा जोध।।

कियो कपि मिंत सुग्रीव सुकाज,

रहच्चे बाळि स किसकंध राज।।

उपाड़ बिगाड़ै समदा ओड़,

कहे सोई जोजन दंुद किरोड़।।

धरी दध पाज पहाड़ां धार,

पदम्म अढार उतारिय पार।।

पड़यौ जद आय वभीखण पाय,

लियौ तद राघव कंठ लगाय।।

उगार बभीखण कीध अभीत,

दीध्ी तैं लंक अलीध अदीत।।

लियौ तैं वार किता गढ लंक,

संघारिय कुंभ मनाड़ै संक।।

जिपै तैं वार किता इंद्र जीत,

संघारिय दैंत बहोड़िय सीत।।

दळै तैं वार किता दसकंध,

बांध्यौ दध देवां छोडण बंध।।

मारे तैं वार किता मकराख,

सानुज्ज उबारे बेदां साख।।

बिखो ब्रज मांय पड़’ती बार,

धरै नख वार किता गिर धार।।

वजाड़े तु वार किताइक वंस,

किता तैं फेराय जीत्यो कंस।।

रजा उग्रसेण सम्मपै राज,

करे जदुवंस तणा सिध काज।।

किता वर पांडवा ऊपर कीध,

लाखाग्रह कंुतां काढे लीध।।

दुसासण द्रोण गंगेव द्रजोण,

खपै कुरखेत अढार अखोण।।

किता तैं सेवग सारण काज,

रच्यौ हथणापुर पंडव राज।।

जळा चख जाळण काळ-जवन्न,

कियो मुचकंद निमित्त किसन्न।।

बाणासुर छेद भुजा बळवत,

कीधी जग जीत लिछम्मी कंत।।

धरे तुय वार किता हर ध्यांन,

ग्रहावण लोक अनोअन ग्यांन।।

भिदै केई वार असुर अभंग,

जुगो जुग कीध कीताइक जंग।।

दुनीचा-काळ भुजाळ दईत,

जिके दळ सज्ज उभै द्रह जीत।।

गुवाळां सेत रखी तैं गाय,

महादुख हूंत छुडाविय माय।।

जळं तांय उत्तरा ग्रभ्भ मंझार,

अनंत परीखत संत उगार।।

निरभ्भय कीन अभैमन नार,

मिलाविय गोप बकासुर मार।।

जिवाड़ै नार तणी जयदेव,

गहे चक पत्त रखै गंगेव।।

पचाळिय साभळ दीन पुकार,

बचाविय लाज विखम्मी वार।।

सपुरै थान इको न सहस्स,

रमापत तोर अभुत रहस्स।।

वछोड़िय रुद्र कपाळ ब्रहम्म,

किधो सूकदेव अतीत करम्म।।

उगारै स्राप थका अमरीख,

सदा किय सेवग आप सरीख।।

असख्या तूझ तणा अवतार,

ब्रहम्मा रुद्र लहै न विचार ।।

नमो सनकादिक स्याम सरीर,

नमो वय पंच ब्रखे चत्र वीर।।

नमो मही साह वराह समत्थ,

नमो हरणाक्ख हते निज हत्थ।।

नमो मछ स्रग मडाण मुकद,

नमो कळि रास दैत निकंद।।

नमो हैग्रीव निगम्म सहेत,

नमो खळमार हयानन खेत।।

नमो बिध वेद समापण विध्ध,

नमो सुर काज करे हर सिद्ध।।

नमो तन हंस त्रिलोकी तात,

नमो बिध गयानं सुणावाण बात।।

नमो प्रहलाद उबारण प्रम्म,

नमो म्रम-कासव मारण म्रम्म।।

नमो कमठाधर रूप सकाय,

नमो मंदराचल पीठ भ्रमाय।।

नमो हरि आप धनतरं होय,

नमो सब रोग निवारण सोय।।

नमो ध्रम-विसंधर धार,

नमो मध व्यापक सोय मुरार।।

नमो बळि-बंधण रूप बावन्न,

नमो भर तीन पगां त्रिभुवन्न।।

नमो त्रय-रूप दतात्रय देव,

नमो जप-तप्प धियांन अजेव।।

नमो जग-आद-पुरक्ख जगीस,

नमो अवतार असंख अधीस।।

नमो नर नारण जोग निवास,

नमो दुख मेट उधारण दास।।

नमो गज तारण मारण ग्राह,

नमो व्रज काज सुधारण वाह।।

नमो धर ध्यानं रिदे हर धार,

नमो मनसा धुव-पूर मुरार।।

नमो पुन भूपत प्रत्थ पुनीत,

नमो अवनी अघ मेट अनीत।।

नमो रिख तापस रूप रिखंभ,

नमो अवतार उदार असंभ।।

नमो कपिलेसर दिष्ट करूर,

नमो सुत स्त्रग जळावण सूर।।

नमो रिख जामदगन्न सुरीस,

नमो किय वार नछत्री इकीस।।

नमों रण रांवण मारण रांम,

नमो किय सिद्ध वभीखध कांम।।

नमो कन्ह रूप निकंदण कंस,

नमो ब्रजराज नमो जदु वसं।।

नमो प्रम संत गऊ प्रतपाळ,

नमो दुसटां दळ दीन दयाळ।।

नमो भव बुद्ध भये भगवांन,

नमो ग्रहि जीव दया उर ग्यांन।।

नमो बचि व्यास निगम्म वखांण,

नमो पह कीध अढार पुरांण।।

नमो इळ मेटण पाप अपार,

नमो बरताविय सतजुग बार।।

नमो निकळं किय नाथ नरेह,

नमो कळि काळख नास करेह।।

नमो अवतार अनंत अपार,

नमो पढ सेस लहै नहिं पार।।

नमो अतुळी बळ तात अनंग,

नमो निरवांण नमो निरलंग।।

नमो पति सूरज कोटि प्रकास,

नमो वन माळिय लील विलास।।

नमो लख कंद्रप लावण तन्न,

नमो मनमोहन रूप मदन्न।।

वदन्न हुलासत नेत्र विलास,

मुगट किरीट अखै गळ माल।।

वसन्न सुपीत वपु घन वांन,

कुंडल मकराकत सोभत कांन।।

उभे कर दुण आबद असख

सारगं पदम्म गदा चक संख।।

नमो पंच व्रन्न परम्म पुनीत,

सितासित नील सुरत सुपीत।।

सहस्त्र विभुत वियापक स्रव्व,

दुवादस अगुळं गात दिपव्व।।

जदुकुल नायक सामिय जग्ग,

पदम्म पताक अलकत पग्ग।।

पंगा री रेण धरे सिर प्रम्म,

धियावै पग्ग अहोनिस ध्रम्म।।

पूजै पद पंकज कमला पाणि,

उदक्क चढावै गंगा आणि।।

पखाळत तीरथ अड़सठ पग्ग,

इद्रादिक देव करत ओळग।।

तळोसै पग्ग नवै निध तम्म,

महासिध साधक जांणत म्रम्म।।

महातम जांणत ब्रहम महेस,

सदा पग आगळ लोटत सेस।।

गुणा नित अस्तुत करत गणेस,

पगां रिख लाग करै निज पेस।।

पगां हणमत करत प्रणाम,

सोह पग आगळ कातकसाम।।

पगा तळ मंडत सीस प्रयाग,

वसै पग आगल ग्ंयान विराग।।

पगा विदया सह जोड़ै पाण,

वळे पग तव खट भाख वखाण।।

आगे पग राज खळक्क उदद्ध,

गरज्ज पगा रज मोटा ग्रद्ध।।

पियै पग – रस्स ब्रहम्मा-पूत,

अमीय सुरंभ लिवै अवधूत।।

पूजै पग विम्मल वेद पुराण,

अळीयळ नाथ लिये अघ्राण।।

लिखम्मी पग्ग धरै उर लेह,

बुधी सिधि पग्ग तळै रह बेह।।

रमै पग – छांह मधूकर रिक्ख,

तकै पग नाग सरीसा तक्ख।।

पगां भणि सिंध्ुव साात पियाळ,

मेल्है पग अग्गि मुताहळ माळ।।

सुहै पग छांह सातू- रिख-स्यांम,

रंजे पग छांह जिसा बळराम।।

सेवै तुझ पांव सदामद सक्क,

इळा पग छांह मयंक अरक्क।।

सेवै तुझ पांव समंदर सात,

निरंजण पांव नमो निरगात।।

जपै पग गोतम गर्ग जमन्न,

कपिल्ल कणाद कहे करमन्न।।

पतंजळ व्यास जुड़ै नित पाण,

वदै पग द्रोण नारद वखांण।।

जपै पग वासिठ जांमदगन्न,

महा वलमीक सनक्क मगन्न।।

परासर वाखिला पद सेव,

अस्टावक अत्रि जांणै अस भेव।।

विस्वामिंत कासप गरूड़ विमेक,

अठासी हजार अखै मन अेेक।।

सेवै पग जन्नक सन्नक सूर,

अभे मन ओधव ओ अकरूर।।

जुजठळ भीम करै पग जाप,

अर्पे पग नीर अरज्जुण आप।।

देखै पग छांह रहै सहदेव,

सदादि नकूल करै पग सेव।।

जपै पग कोट-छपन्न-जदूव,

वंदै सुकदेव जसा विसनूव।।

पगां बिहुं-राह करंत प्रयांण,

सेवै पद कंज सन्यासि सयांण।।

प्रणम्मै पग्ग परम्म प्रवीत,

सावत्री गौरि गायत्री सीत।।

सेवे पग चारण किन्नर सिद्ध,

वदै पग रा जस वंस विसुद्ध।।

जुहारै पग्ग जिसा जयदेव,

सेवग्ग अनेक करै पग सेव।।

हुवै पग छांह सदा हर हार,

सोहै पग छांह सुव्रक्ख संसार।।

सेवै पग छांह विबुध्ध समाज,

रहै पग छांह वड़ा बळिराज।।

चरच्चै पग्ग निरम्मळ चंद,

दियै पग वंदन देव दुड़इंद।।

तळै पग छांह नवग्रह तांम,

पगां दिगपाळ करंत प्रणाम।।

वडा पग नित वदै दरवेस,

देखै पग देव करै आदेस।।

उळग्गत पांव धरम्म अलक्ख,

चहै पग गोरख आतुर चक्ख।।

अळू झत पांव विरक्त अमांण,

सेवै पग राउर दास सुजांण।।

आवै पग ओळग छांह अलाह,

लियै पग छांह तणा फळ लाह।।

अछै पग छांहजिसा कुळ सात,

प्रणम्मै पग्ग सरग्गम सात।।

पगां सब वंदई जोड़त पांण,

भुवन्न-चऊद जपै पग भांण।।

वडा जोगिन्द्र वंछै पग वास,

तुुहाळा पग्ग न मेल्हूं तास।।

अहिल्या रेस दियो तै अंग,

सरीर कुबज्जाय कीध सुचंग।।

दीधी नळ कूबड़ उतम देह,

न भांग्यो नागण- नाग सनेह।।

अखंा उपमा नख कोट अरक्क,

सम्राथ सरज्जण भंजण सक्क।।

इके खिण मांझ भंजै धर आभ,

निपाय अधेखिण पदम नाभ।।

परम्मल कम्मळ सद्रस पग्ग,

निधान परम्म निवारण न्रग्ग।।

जटाधर वंछै दैंत जळाय,

विमोहे रूप असाध बणाय।।

इसा पग तूझ तणाह उदार,

सेवंतां पाप टळै संसार।।

म ठैल म ठेल पंगा सूं मूझ,

त्रिविक्रम नाथ अनाथंह तूझ।।

पदारथ लाधोय तू ज परब्ब,

सुत्रां जिम तांणा-वांणाय स्रब्ब।।

पुरांण स प्रभ्भ वंचाणाय पत्र,

जगत्पति तूु हीज तूु ज जगत।।

जगतिय जातिय – पांतिय जांण,

प्रछन्न हुवो तउ दीठोय प्रंाण।।

दीठो प्रभ आतम आपहि दाख,

भुवन नहीं जिण ठोड़ स भाख।।

छुटो थयो माहव घूंघट छोड़,

ठयो तूं ठावो ठाविय ठोड़।।

मुणां किथ जाग असी जग मूर,

नहीं जिण मांझ तुहारोय नूर।।

जळा-थळ थावर जंगम जोय,

कठै हरि तूझ पखै नहीं कोय।।

मकोड़िय कीट पतंग मुणाल,

भिखंग तु हीज तु हीज भुआळ।।

सबै भरपूर रह्îो घनस्यांम,

रमै घट मांझ सदा तुहि राम।।

हरि तू वणाविय बाजिय हद,

बाजीगर तूझ बडोय बिहद।।

अछैै स्त्रब मांझ तु आप अलूझ,

गोविन्द तुहाळो लाधोय गूझ।।

मुकंद म पैठ पड़दा मांय,

ठावो हों कीध सबें हिय ठांय।।

सबै असथांन हों देखत सांइ,

मांणस देवत नागांय मांहि।।

इंडज स्वदेज जरा उदभज्ज,

माया सब तूझ म भूलव मुज्ज।।

सुरत तु हीज तू हीज सबद,

मरद-मंहलाय आप मरद।।

क्रतांत तूं क्रत क्रीड़ा तुय कंाम,

रमाड़ म पग्ग लाधो हिव र?

Author: Jaydip Bhikhubhai Udhas

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