” स्व के साथ संवाद – हदमें रहेना “

हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… (२)
हदमें रहके मुझे बेहदको (२) खोजते रहेना रे… जो
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे…

व्यस्त रहूं, मनमस्त रहुं, मुझे कर्म ही करना…
ईर्ष्या, तृष्णा छोड़ के मुझे, आगे ही बढ़ना रे…
तुलनाका कोई शब्द ना होये (२), वेसे गीत ही गाना रे… हदमें रहेना, हदमें रहेना, हदमें रहना रे… ०१.

तरह तरहका लोग कहेंगे, दिलपे ना लेना रे…
दुनिया है दोरंगी उसका ना बुरा लगाना रे…
उनकी बातों में आये बिना (२) आनंदमें रहेना रे…(२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… ०२.

उम्मर बढ़ गई बहाना ना दूंगा, युवा दिलसे रहेना रे…
नाथ कराये वो कार्य हमेशा, दिलसे करना रे,
अंतिम क्षण तक मिले जो आनंद (२) बांटते रहेना रे…(२) हदमें रहना, हदमें रहेना, हदमें रहेना रे… ०३.

तेरे मेरे युगकी बातें, वृथा विवाद ना करना …
अच्छे सच्चे कार्य ही करके, समय परखना रे…
में ही मेरा दोस्त या दुश्मन (२) है ये विवेकबुद्धि रे..(२)
हदमें रहना, हदमें रहना, हदमें रहना रे… ०४.

किसी भी बातका ठेका ना लेना, फर्ज निभाना रे…
अच्छे विचारों खुल्ले दिमागसे लेते ही रहेना रे…
ज्ञानका आचरण करके अपनी (२) सूझ बढ़ाना रे…(२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… ०५.

लोभ लालच राग द्वेषको छोडू, सकारात्मक रहेना रे…
मध्यम मार्ग और मीठी बानीसे, रचनात्मक रहेना रे…
कीर्ति कमाऊं पर पैसोंके (२) पीछेही ना पड़ना रे…(२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… ०६.

लोग तो बस परिणाम देखेंगे, परिणाम ही देना रे…
हरिफाई मेरी मेरे साथ है, दुजे से दुःखी क्यूं होना रे…
भूल हुई तो उसमें से भी (२) शिखते रहेना रे… (२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… ०७.

माफ़ सभीको करते रहेना आघात भी सहेना रे…
सामने वाले की परिस्थिति, महेसुस भी करना रे,
टिका टिपण्णी किये बिना बस (२) प्रतिभाव ही देना रे..(२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… ०८.

सभी कार्योंको पसंद करके तृप्तिके डकार भी लेना रे… खासियतोंको और बढाके, सपने संवारने रे…
भूत भावीको छोड़के मुझे (२) वर्तमान में जीना रे…(२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… ०९.

लाइट हाउस जैसा व्यक्तित्व मुझको विकसित करना रे…
ज्ञान शक्ति की नींव को मजबूत करते रहेना…
बुद्धि शक्ति से मेरे प्रयत्नों (२) बढ़ाते ही रहेना रे…
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हद में रहना रे… १०.

सम्बन्ध में उतरूं ना गहरा कामसेकाम ही रखना रे…
किसी के साथ अति घुलमिल ना जाऊ ना दूर भी रहेना रे…
जलकमलवत रहके जीवनमें (२) कार्यरत रहेना रे… (२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हदमें रहना रे… ११.

जीवनभर बस शिखता रहूं ये कर्म ही मेरा रे…
भररास्ते में कहापे पहुंचा, उसकी चिंता ना करता रे…
स्वव्यवस्थापनके सिध्धातो (२) पालन करते ही रहेना रे..(२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हदमें रहना रे… १२.

“क्रिष्न” कहे जीवन का मतलब, ऐसे ही मिलेगा रे… स्वशीस्त, स्वनियंत्रणकी मजा, लेते ही रहेना रे…
भाग्य तेरा बस ऐसे ही खिलेगा (२) तू निश्चिन्त रहेना रे…(२)
हदमें रहेना, हदमें रहेना, हदमें रहेना रे… १३.

हदमें रहेना, हदमें रहेना, हदमें रहना रे… (२)
हदमें रहके मुझे बेहदको (२) खोजते रहेना रे…
हदमें रहना, हदमें रहेना, हदमें रहना रे…

रचयिता क्रिष्नदान रोहडिया, वड़ोदरा
दिनांक २०/०५/२०२१

Jabbardan Gadhavi

Author: Jabbardan B. Gadhavi (JB)

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