धन धन भादरेश धरा सरवत सुख सरसाय।
पनरे समत पनरोतरे ईशर जन्मया आय।
हरि समरण रचत हरिरस कीधा प्रभु गुणगान।
जो जन पढ़े इण जगत मो भव तारण भगवान।
छंद – रेंणकी
जग पर समत पनर पनर पर जन्मत माह छामण शुद्ध बीज लिया।
पग पग हर समर समर कर धर पर अमर कोख तव जनम दिया।
पल पल कर याद प्रकट परमेशर इळ पर ईशर नाम दिया।
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया जिय तारण हरिरस आप दिया ।। 1
इक बार पंगत जन आय अचानक डेरा धर भादरेश किया।
घर पर कर जाझा कोड साधुजन संगत को भोजन आप दिया।
भगवन तुझ सुत देगा बहुनामी ज्वाल वचन जद सूर लिया।
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया।जिय तारण हरिरस आप दिया।। 2
धर पर पांच पुत्र दिया परमेशर भोज चोळा अर नँद कुरा।
वर वर कर भेर सुता वर ईशर घर पर देवल आय सुरा।
कर कर अत गहर महर जगदीशर जोग चूंडा सुत दोय दिया।
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया।जिय तारण हरिरस आप दिया।। 3
इक बार अचानक धोय चरु जद देवल डंक बिछुवन दियो
देकर वचनात सोय तव धर पर जाय जनम सौराष्ट्र लियो
लेकर बारात तोय घर अवसुर आय राजल को वर लिया।
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया।जिय तारण हरिरस आप दिया ।। 4
निश् दिन तव समर ध्यान कर नवलख परतख परसन आप किया
रिझ रिझ खुद आय माय तुझ रिझकर देव दर्शन खुद आप दिया।
लिख लिख तुझ नाम देवी गुण लिखकर सगत रचन देवियांण किया।
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया जिय तारण हरिरस आप दिया।। 5
जप जप कर नाम जपत जगदीशर जप सूं सांगो गोड़ जियो।
तप तप कर ताप तपत परमेशर करण जीवण रो काम कियो।
जद जद तव याद किया जद ईशर आय अवन तुझ काम किया।
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया।जिय तारण हरिरस आप दिया। 6
धर धर पर तजण रहण अब धर पर समत सोळ बावीस सही।
भर भर कर बंटत बंटत निज कर भर मिसरी जन जन बाँट मही।
हर हर कर समर मिळण हरि हर को ईशर घोड़ा झोंक दिया
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया जिय तारण हरिरस आप दिया। 7
नित नित याद करे कवि राजन नित भांग पीड़ खुशियां ज भरे।
चित चित फरियाद नाम कर चित नित काज सफल अब आप करे।
जय जय मुख उचरत ईशर तव जय कवि राजन गुणगान किया।
भव भव सब भरम मिटावण भव जग कारण ईशर काम किया जिय तारण हरिरस आप दिया।। 8
छपय
ईशर जनम अवतार भाग सूरा घर भारी।
ईशर जनम अवतार आप आया अवतारी।
ईशर जनम अवतार देव घणाय दातारी
इशर जनम अवतार सुख संपत दे साधारी।
ईशर ईशर नित रो कहो अर पावो सुख अपारा।
कवि राजन कर जोड़ कहे आवो नित नित द्वारा।।
– कवि श्री राजेंद्र दान बारहठ, झणकली। (कवि राजन)