राग यमन
जाति सम्पूर्ण तीव्र म, ग नि संग सुहाय,
प्रथम प्रहर निशि गाइये, यमन राग मन भाय।
यमन राग मन भाय, थाट कल्याण कहाता,
कहें ‘देवेन्द्र’ यमन, तीनों सप्तक में मन भाता।।
राग भूपाली
औडव जाति म नि बरजि, ग ध वादी संवाद,
प्रथम प्रहर निशि गाइये, भूपाली कर याद।
भूपाली कर याद, थाट कल्याण है इसका,
कहें ‘देवेन्द्र’ चलन मंद्र और मध्य है जिसका।।
राग मालकौंस
ग ध नि कोमल रखो, म स संग सुहाय,
औडव- औडव जाति संग, मालकौंस मन भाय।
मालकौंस मन भाय, थाट भैरवी जानों,
कहें ‘देवेन्द्र’ समय मध्य रात्रि ही मानों।।
राग भैरवी
सदा सुहागन रागिनी, रख म स संवाद,
सम्पूरन कोमल सकल, भैरवी को रख याद।
भैरवी को रख याद, थाट भैरवी में ही आती,
कहें ‘देवेन्द्र’ भैरवी प्रातः, गुनियन मन भाती।।
राग बिहाग
आरोहन रे ध बरजि, रख ध – ग सम्वाद,
ग – नि वादी – संवादी संग, बिहाग राग कर याद।
बिहाग राग कर याद, थाट बिलावल जानों,
कहें ‘देवेन्द्र’ बिहाग, रात्रि द्वितीय प्रहर में मानों।।
राग हमीर
कल्याण थाट गुनि जानिये, औडव सम्पूर्ण कर गान,
दोनों मध्यम शेष शुध्द, राग हमीर को जान।
राग हमीर को जान, ध-ग सम्वाद सुहाय,
द्वितीय प्रहर निशि गाय, ‘देवेन्द्र’ उत्तरांग मन भाय।।
राग कामोद
कल्याण थाट का राग यह, रख रे-प संवाद,
दोऊ मध्यम लगायकर, कर कामोद को याद।
कर कामोद को याद, मध्य और तार में सोहे,
रेप, मेपधप, गमरे, ‘देवेन्द्र’ गुनियन मन मोहे।।
राग केदार
थाट कल्याण मानिये, और दोऊ मध्यम जान,
स-म के सम्वाद से, केदार राग पहचान।
केदार राग पहचान, जाति औडव-षाडव जानों,
मधुर राग ‘देवेन्द्र’, समय रात दूजा प्रहर ही मानों।
राग भीमपलासी
ग-नि कोमल शेष शुध्द, म-स का सम्वाद,
रे-ध आरोहन बरज, भीमपलास कर याद।
भीमपलास कर याद, जाति औडव-सम्पूर्ण जानों,
कहें ‘देवेन्द्र’ काफी थाट, चलन मंद्र और मध्य में मानों।।
राग मियाँ मल्हार
मियाँ तानसेन सृजन करो, मल्हार कान्हड़ा संग,
मरेप मल्हार है, निप गमरेस कान्हड़ा अंग।
निप गमरेस कान्हड़ा अंग, पावस में अति सोहे,
कहें ‘देवेन्द्र’ पूर्वांग निधनिस, मियाँ मल्हार में मन मोहे।।
काफी थाट जन्य है, स-प वादी संवाद,
सम्पूर्ण-षाडव जाति संग, मियाँ मल्हार कर याद।
मियाँ मल्हार कर याद, पावस में अति सोहे,
कहें ‘देवेन्द्र’ कान्हड़ा अंग ले, गुनियन मन मोहे।।
राग बहार
काफी जन्य मानों गुनी, रख म-स संवाद,
षाडव-षाडव जाति है, राग बहार कर याद।
राग बहार कर याद, मध्य रात्रि अति सोहे,
कोमल गन्धार द्वै निषाद संग, गुनियन मन मोहे।।