हजूर आपका भी एहतराम… गज़ल

हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूँ
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूँ

निगाह-ओ-दिल की यही आख़री तमन्ना है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम करता चलूँ

उन्हे ये ज़िद के मुझे देखकर किसी को ना देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ

ये मेरे ख़्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूँ

– शादाब लाहौरी

Jabbardan Gadhavi

Author: Jabbardan B. Gadhavi (JB)

Tumhare bas me agar hai to bhul jao hame...