मननी वातुं रइ मनमांय जी–
वातुं रइ मनमांय, रुदीयानी सांतेल कहुं रघुराय ! मननी वातुं (टेक)
लोह वजरनो थांभलो, केम धरणी हेठ धराय जी ?
भोरिंग शीरथी भार सघळो (२), हवे न हळवो थाय
मननी वातुं रइ मनमांय…
वामन थइ तमे बांध्यो बळिने, सुरनी किधेल सहाय जी (२)
जइ पाताळे छोडावत हुं (२), बंधनथी बळिराय
मननी वातुं रइ मनमांय…
रात तणा राजाने रुदिये, काळो दाग कळाय जी (२)
कलंक एनुं काढवानो (२), विचार वणसी जाय
मननी वातुं रइ मनमांय…
जमपुरीने मारग कोइने, जमना तेडा न थाय जी (२)
सौनी मेळे जीव सौना (२), हिसाब समजी जाय
मननी वातुं रइ मनमांय…
अमृत केरा कूंपा आणी, बोळत दरिया मांय जी (२)
“काग” सागर मीठो करवानुं (२), स्वपनुं ह्यदय समाय
मननी वातुं रइ मनमांय…
रचना = चारणकवि पद्मश्री कागबापु
टाइपिंग = राम बी गढवी
नविनाळ-कच्छ
फोन =7383523606
(आ रचना कागवाणी भाग–४ मांथी टाइप करेल छे भुलचुक सुधारीने वांचवी)
वंदे सोनल मातरमं