नेहडे रे नेहडे आइ तारा नाम छे..

नेहडे रे नेहडे आइ तारा नाम छे..
चारण कुळ ने तारण मोरी मात रे
मढडा रे वाळी….
पुजुं हे परमेस्वरी तारा पांव ने…

हे एवा हमीर ने घेरे दीवडो प्रगट्यो….
ज्योत एनी ब्रहमांड सुधी जाय रे…
मढडा रे वाळी….
पुजुं रे परमेस्वरी तोरा पांव ने…..

हे एवी अंधकार हटावी अजवाळ स्थापिया…
आराधन किधा आवड तारा आइ रे…
मढडा रे वाळी….
पुजुं रे परमेस्वरी तारा पांव ने…

हे एवा भावथी आइ अमने भणाविया…
आप्या अमने अस्मिता केरा ज्ञान रे….
मढडा रेे वाळी…
पुजुं रे परमेस्वरी तोरा पांव ने…

हे एवा वाणी रुपे अमृत आपियां…
भुला पड्या भोमियो बनी आइ रे….
मढडा रे वाळी….
आइ पुजुं रे परमेस्वरी तोरा पांव ने…

हे एवा अँबाना उपासक चारण चेतजो…
सोनल एवी राह बतावे “राम” ने…
मढडा रे वाळी……
आइ पुजुं रे परमेस्वरी तारा पांव ने…

(ढाळ – आसरो रे मांगु आशापुरा आइनो)

रचना – राम बी गढवी
नविनाळ कच्छ
फाेन नं — 7383523606

वंदे सोनल मातरमं

Author: Jaydip Bhikhubhai Udhas

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