(ढाळ — जीवन है अगर जहर तो पीना ही पडेगा)
इंज हल्या वनबो मडे,इंज छडेने
वेंधे डठाे न काेय मथे गंठडी बधीने…
भेरो करेने जान मथे भार पां कर्युं
संसार जे सागर मे वनो,इज डुबीने..
वेंधे डठाे न कोय…
परमारथे न पग भर्यो,भलाइ कीं न कइ
दातारी न हथ वर्यो कमाइ कीं न कइ
पोंनाइ जो पल्लो ठलो व्या इंज छडेने
वेंधे डठो न काेय…
सोणीने संतवाणी के अपनायो न कीं सार
नडे न धन खयें मे तेंला धरम रख्यो धार
लखों लडेव्या इंज ढींगले ते कोडीने
वेंधे डठो न कोय…
विचार ने वाणी तेडो वर्तन कडें न थ्याे
ब्येंके डनासीं बोध तेसीं पडजो ओलइ व्याे
खाली हथें पाछा वर्या दुनिया के छडेने
वेंधे डठो न कोय….
शक्ती छतांपण भावसे भक्ती कडें न थइ
मैत्री न काेइ जीवसे करुणा कडें न कइ
माणइ न कडें न मोज आत्मरमण करेने
वेंधे डठो न कोय मथे गंठडी बधीने…
-अज्ञात