ऑपरेशन मेघदूत: बर्फीले सियाचिन में भारतीय सेना का ‘विजय मिशन’

 

योद्धा पैदा नहीं होते, बल्कि योद्धा भारतीय सेना में तैयार किए जाते हैं.

ऊपर लिखी इन पंक्तियों से भारतीय सेना की जाबाजी और ताक़त का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है. जब हम रात होते ही नींद में खो जाते हैं, तब हमारे भारतीय सैनिक देश की सुरक्षा के लिये बॉर्डर पर तैनात हो जाते हैं.

यही नहीं जब भी भारत के अंदर किसी ने गलत इरादे से घुसने की हिम्मत की, तब-तब भारतीय सेना के इन जवानों ने अपनी ताक़त दिखाते हुए उनको मुंहतोड़ जवाब दिया. कई बार तो परिस्थितियां उनके खिलाफ तक रहीं. बावजूद इसके उन्होंने अपने सैन्य ऑपरेशनों पर जीत का परचम लहराया है.

‘ऑपरेशन मेघदूत’ इसका बड़ा उदाहरण है. इस सैन्य ऑपरेशन में भारतीय सेना के जवानों ने सियाचिन की हडि्डयां गला देने वाली ठंड के बीच पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था!

कैसे, आईये जानते हैं-

भारतीय ‘खुफिया एजेंसी रॉ’ से मिला इनपुट

भारत को अपनी खुफिया एजेंसी रॉ  से ख़बर मिली कि 17 अप्रैल 1984 को पाकिस्तान सेना सियाचिन ग्लेशियर में कब्ज़े के लिए चढ़ाई करेगा. असल में पाकिस्तानी सैनिक सियाचिन ग्लेशियर पर कब्ज़ा जमाकर खुद को मज़बूत स्थिति में लाना चाहते थे.

वैसे भी सैन्य युद्ध में ऐसी धारणा रही है कि जो सेना युद्ध में ऊंचाई पर पहुंचकर आक्रमण करती है, उसकी जीत तय होती है. शायद इसलिए ही पाकिस्तान सेना सियाचिन के ग्लेशियर को कब्ज़ाना चाहती थी. हालांकि, यह आसान काम नहीं था.

भारतीय ‘खुफिया एजेंसी रॉ’ से मिले इनपुट के बाद भारतीय सेना तुरंत हरकत में आ गई. साथ ही दुश्मन के नापाक मंसूबों पर पानी फेरने के लिए तैयार हो गई. जल्द ही सेना के जवानों को अपनी-अपनी पोस्ट पर रणनीति के हिसाब से तैनात होने की हिदायत दी गई. उनसे कहा गया कि किसी भी सूरत में पाक सैनिक एक भी इंच आगे नहीं बढ़ने चाहिए.

Indian Army Got Alerted After Pakistan’s Siachen Movement (Representative Pic: pintrest)

कुछ ऐसा था ‘ऑपरेशन मेघदूत’

पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए एक खास मिशन बनाया गया, जिसे नाम दिया ऑपरेशन मेघदूत. इस ऑपरेशन के तहत 13 अप्रैल 1984 को ग्लेशियर को अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई थी, क्योंकि ‘रा’ से मिले इनपुट के हिसाब से पाकिस्तानी सेना ने 17 अप्रैल तक ग्लेशियर पर कब्ज़ा करने की योजना बनाई थी.

ऐसे में भारतीय सेना 4 दिन पहले ही ग्लेशियर पर पहुंचकर पाकिस्तान सेना के मंसूबों पर पानी फेर देना चाहती थी. हालांकि, यह आसान नहीं था. भारतीय सेना के सामने कई चुनौतियां थीं, जिनमें सबसे अहम ऊंची पहाड़ी पर चढ़ाई करना और रात के समय में ही चढ़ाई करना था. दूसरी तरफ भारतीय सेना के पास समय काफी कम था.

बहरहाल, इस सबके बावजूद भारतीय सेना का जज्बा देखने लायक था. उन्होंने इन विकट परिस्थितियों में भी अपना धैर्य बनाए रखा और तेजी से अपने ऑपरेशन के लिए आगे बढ़ना शुरु किया. जम्मू एवं कश्मीर के श्रीनगर में 15 कॉर्प के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हुन इस ऑपरेशन की अगुवाई कर रहे थे.

ऑपरेशन का पहला चरण मार्च 1 9 84 में ग्लेशियर के पूर्वी बेस के लिए पैदल मार्च के साथ शुरू हुआ. कुमाऊं रेजिमेंट की एक इकाई युद्ध सामग्री के साथ जोजिला दर्रे से होते हुए सियाचिन की और बढ़ी. लेफ्टिनेंट-कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) डी के खन्ना के कमान के तहत इकाइयां पाकिस्तानी रडारों द्वारा बड़ी सैनिकों की गतिविधियों का पता लगाने से बचने के लिए पैदल ही चले थे.

Indian Army Started Operation Meghdoot (Representative Pic: pintrest)