आपने चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोका जैसे मशहूर भारतीय जांबाजो के बारे में तो खूब पढ़ा और सुना होगा. हालांकि आपने विदेशी धरती के वॉरियर के बारे में कम सुना होगा.
इस कड़ी में आज हम आपको बताएंगे दुनिया के कुछ ऐसे वॉरियर के बारे में जिन्होंने अपनी ताकत के बलबूते पर अपना नाम कमाया है.
तो चलिए जानते हैं इन योद्धाओं के बारे में–
एलेक्ज़ेंडर तृतीय
एलेक्ज़ेंडर को दुनिया का महान वॉरियर कहा जाता है. एलेक्ज़ेंडर मैसेडोनिया देश का राजा था. एलेक्जेंडर को दुनिया जीतने का एक जुनून था. वह राजा बनते ही दुनिया जीतने के लिए जंग पर निकल पड़े थे. उनके अंदर एक अलग ही काबिलियत थी जिसके कारण उन्होंने दुनिया के कितने ही देश जीते.
कहते हैं एलेक्ज़ेंडर की सात से आठ पत्नियाँ थीं.
इतिहास के इस महान वॉरियर एलेक्ज़ेंडर के जन्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है. हालांकि माना जाता है कि एलेक्ज़ेंडर का जन्म 20 जुलाई 356 बीसी में हुआ था.
कहते हैं कि एलेक्जेंडर ने अपनी शिक्षा के लिए अरस्तू द्वारा खुद को पढ़ाया जाने का इंतजाम भी किया था.
एलेक्जेंडर ने ज्ञान, तर्क, दर्शन, संगीत और संस्कृति के प्रेम में शिक्षा प्राप्त की थी. वह युद्ध में सेनाओं के साथ उतर जाता था. गंभीर घावों के बाद भी उनका साहस कम नहीं होता था बल्कि वह और तेजी से लड़ना शुरू कर देता था.
अपने इस हौंसले के साथ ही उन्होंने लगभग समूची दुनिया को अपने कब्जे में कर ही लिया था.

चंगेज़ ख़ान
चंगेज खान जिसने 1162 से 1227 तक शासन किया एक मंगोल शासक था. उसने मंगोल शासन के विस्तार में बहुत अहम भूमिका निभाई थी.
जिस समय चंगेज खान ने गद्दी संभाली थी उस समय मंगोलों का समय बहुत ख़राब चल रहा था. ऐसे में चंगेज खान के आने के बाद से मंगोल साम्राज्य बढ़ता ही गया.
वह जब अपनी सेना लेकर जंग में उतरता था तो कोई भी उसके सामने आने से कतराता था. इसी कारण उसने चीन में भी जीत हासिल की थी.
चंगेज खान ने पोलैंड, वियतनाम, सीरिया, कोरिया जैसे देशों तक आगे बढ़ते हुए अपने साम्राज्य का विस्तार किया था. चंगेज़ ख़ान ने अपने शासन के दौरान व्यापार को भी काफी बढ़ावा दिया था. कहते हैं कि चंगेज खान ने अंतराष्ट्रीय डाक प्रणाली का निर्माण भी किया था.
1227 में चंगेज खान की मृत्यु हो गई थी.

लियोनिडैस
लियोनिडैस स्पार्टन का राजा था.
वह अपने शौर्य और पराक्रम के लिए जाना जाता है. लियोनिडैस के जन्म के बारे में कोई सटीक प्रमाण तो नहीं है. हालांकि कहते हैं कि उसने 480 ईसा पूर्व में थर्मोपाइल के युद्ध के दौरान अपनी 300 स्पार्टन की सेना के साथ अकेले ही पर्शिया का सामना किया था.
यूनानियों की सेना बहुत बड़ी और खतरनाक थी फिर भी लियोनिडैस ने हार नहीं मानी. उन्होंने 300 होने के बाद भी बड़ी यूनानी सेना को घुटनों पर ला दिया था.
उनके नेतृत्व में ही उनकी छोटी सी सेना ने इतना बड़ा काम किया था.

रिचर्ड ऑफ इंग्लैंड
रिचर्ड को रिचर्ड द लायनहार्ट भी कहा जाता था. रिचर्ड का जन्म 8 सितंबर 1157 में ऑक्सफोर्ड इंगलैंड में हुआ था. रिचर्ड के पिता का नाम हेनरी द्वितीय था. रिचर्ड आपने तीसरे धर्मयुद्ध के कारनामों के लिए प्रसिद्ध हैं.
माना जाता है कि उन्होंने अपने 10 साल के शासन काल में केवल 6 महीने ही इंग्लैड में बिताए.
रिचर्ड के पास शुरुआत से ही राजनीतिक और सैन्य क्षमता थी.
वह अपनी सेना को लेकर अक्सर जंग के लिए तैयार रहते थे. वह इंग्लैंड का राज दूर-दूर तक फैलाना चाहते थे. यही कारण है की वह घर से ज्यादा बाहर ही रहते थे.
उन्हें लायनहार्ट इसलिए भी कहा जाता था क्योंकि वह बिना दुश्मन की ताकत जाने ही उससे लड़ने निकल पड़ते थे. उन्हें कभी भी इस बात का डर नहीं था की वह मर जाएंगे. वह तो बस लड़ना चाहते थे.
लड़ाई के मामले में भी उन्हें बहुत ही अच्छा माना जाता था. कहते हैं कि वह जब तलवार चलाते थे तो सामने वाला व्यक्ति उनकी कला को देखते ही हार मान लेता था.

हान्निबल
हान्निबल का जन्म 247 ईसा पूर्व उतर अफ्रीका में हुआ था. हान्निबल अपने काल के सबसे बड़े सैन्य नेताओं में से एक थे. किसी युद्ध को किसी तरह की रणनीति से चलना है इसका ज्ञान उन्हें अच्छी तरह से था.
218-201 ईसा पूर्व में रोम चल रहे द्वितीय प्यूनिक युद्ध को हान्निबल ने अपनी मृत्यु तक जारी रखा था.
हान्निबल के पिता भी सेना में ही थे. जंग के दौरान ही उनकी मौत हुई थी. अपने पिता की मृत्यु के बाद हान्निबल ने कसम खाई थी कि वह रोमन गणराज्य के लिए लगातर संघर्ष जारी रखेंगे.
उन्होंने अकेले ही पूरी जी-जान लगा दी रोमन राज्य को बचाने के लिए. युद्ध में उनकी रणनीतियों के कारण ही उन्होंने कितनी ही लड़ाईयां अपने नाम की थीं.

शाहोऊ डन
शाहोऊ डन चीन के प्रसिद्ध हान राजवंश के एक सैन्य जनरल थे.
माना जाता है कि अपने समय के वह सबसे कुशल योद्धा थे. चीन के कितने ही भीषण युद्ध में शाहोऊ ने एक योद्धा के रूप में बहुत ही अहम भूमिका निभाई.
शाहोऊ डन ने अपनी मृत्यु के कुछ महीनों पहले तक युद्ध में अपनी सेवाएं दी थी.
शाहोऊ डन एक भरोसेमंद जनरल माने जाते थे. कितने ही बड़े युद्ध की कमान खुद शाहोऊ ने संभाली थी. ऐसे ही एक युद्ध में उन्होंने अपनी एक आँख खो दी थी. एक तीर उड़ता हुआ सीधा उनकी आँख पर लग गया था, जिसके कारण आखिर में उनकी एक आँख की रोशनी ही चली गई.
एक आँख जाने के बाद भी उनकी वीरता पर कोई असर नहीं पड़ा था. इसके बाद तो उन्हें एक आँख वाले महान योद्धा के रूप में देखा जाने लगा. एक आँख चली जाने के बाद भी उन्होंने लड़ना नहीं छोड़ा और कई युद्ध अपने नाम किए.

व्लाद द इम्पेलर
व्लाद द इम्पेलर 15 विन शताब्दी के प्रसिद्ध राजाओं में एक थे जो यूरोप में ओटोमन के विस्तार के दौरान रहते थे. व्लाद दा इम्पेलर का जन्म 1431 में हुआ था.
माना जाता है कि वह बहुत क्रूर थे. अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने तीन बार चीन पर राज किया.
1462 में व्लाद तुर्की साम्राज्य ओटोमन के साथ युद्ध में शामिल हुए.
वह क्रूर तो थे ही मगर इसके साथ ही वह एक अच्छे योद्धा भी थे. वह जंग को किसी सनकी व्यक्ति की तरह लड़ा करते थे. एक बार जैसे ही उन्हें हवा में खून की महक मिलती वह पागल से हो जाते थे.
जंग में तो वह दुश्मन के सैनिकों को मारते ही थे मगर पकड़े गए सैनिकों के साथ तो वह और भी बुरा करते थे. उन कैदियों को ही व्लाद की क्रूरता सबसे ज्यादा झेलनी पड़ती थी.
व्लाद के अत्याचारों की कोई सीमा नहीं थी. इसलिए माना जाता है कि व्लाद द इम्पेलर ने करीब 1,00,000 लोगों को अपने पूरे जीवन में मारा था.

अर्मिनस
अर्मिनस को 9-16 ईस्वी के दौरान जर्मनी के एक महान योद्धा के रूप में जाना जाता था, जिसने जर्मनी की तरफ से रोमन पर विजय प्राप्त की और सेना का नेतृत्व भी किया.
जर्मन और रोमन के बीचे हुई जंग के कारण ही अर्मिनस इतना प्रसिद्ध हुए. जंग में उन्होंने सबके सामने अपने साहस दिखाया. वह जंग में किसी शेर की तरह जाते थे. रोम की बड़ी और खतरनाक सेना के सामने भी अर्मिनस सीना फैलाए आया करते थे.
उन्हें रोम से कोई खौफ नहीं था. वह तो बस उन्हें ख़त्म करना चाहते थे. इस काम के लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी.

काउंट रोलैंड
काउंट रोलैंड एक महान फ़्रांसिसी योद्धा माने जाते हैं. फ़्रांसिसी मध्ययुगीन इतिहास में उन्हें एक लोक नायक माना गया है.
काउंट रोलैंड ने फ़्रांसिसी के लिए कई अच्छे काम किये थे. इसलिए उनका ज़िक्र वहां की वीर गाथाओं में हुआ करता था.
उन्हें ब्रिटेन के पास नियुक्त किया गया था. उनका काम था कि दुश्मन को ब्रिटेन पर कब्ज़ा करने से रोकना. जब तक काउंट वहां पर रहे उन्होंने कितने ही दुश्मनों को रोका.
सामने आने वाले हर खतरे का उन्होंने डट के सामना किया था. अपनी आखिरी साँस तक उन्होंने दुश्मन को जीतने से रोका.
Count Roland (Pic: allinnet)