वासुदेव बलवंत फड़के: गोरों की हुकूमत खाक में मिलाने वाला क्रांतिकारी

 

अंग्रेजों की गिरफ्त में आकर उस भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के हाथ बंध गए थे. सलाखों के पीछे उस कैदी का लहू उबल रहा था. असल में वह गोरों के चंगुल से भागने की फ़िराक में था.

आखिरकार वह समय आ ही गया जब रात के अँधेरे और सन्नाटों ने उसे भाग जाने का संकेत दे दिया.

उसने बाजुओं की ताकत से सलाखों को मोड़कर जेल से निकलने का रास्ता साफ़ कर लिया.

गिरफ्त से छूटकर वह धीरे-धीरे दबे पाँव जेल से बाहर निकला और क़दमों की हरकत को बढ़ा दिया. जेल से भागते हुए वह करीब सत्रह मील दूर आ चुका था.

उधर उस कैदी के फरार होने की खबर से जेल के सुरक्षा पहरेदारों में खलबली मची हुई थी. हर इलाके में उसकी खोज होने लगी. अंत में वह अंग्रजों की नजरों से छुप नहीं पाया और पकड़ा गया.

हम आज एक ऐसे कैदी की बात कर रहे हैं जो भारत माँ का सच्चा वीर सपूत था. आजादी के पहले उसका जलवा इस कदर कायम था कि वह अकेले ही गोरों की टोली पर भारी पड़ने लगा था.

उस क्रांतिकारी का नाम था वासुदेव बलवंत फड़के.

ब्रिटिश शासन काल में उसका सिर्फ एक ही मकसद था… ‘फिरंगियों की गुलामी से हिंदुस्तान की आजादी’.

इस क्रांतिकारी ने इस कदर अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था कि उन्हें घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

स्वतंत्रता की लड़ाई में अक्सर बहुत से जाने पहचाने चेहरों का नाम लिया जाता है मगर वासुदेव का काम ही उनकी असली पहचान थी.

तो चलिए आज इस लेख के माध्यम से जानते हैं वासुदेव बलवंत फड़के के बारे में–

थाली बजाकर किया गुलामी का विरोध, पर…

वासुदेव क्रांतिकारी होने से पहले बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करते थे.

अपने परिवार की जीविका चलाने के लिए वह नौकरी किया करते थे. दफ्तरों में काम करने वाले भारतीय लोगों के साथ अंग्रेजों का दुर्व्यवहार हदें पार कर चुका था.

वासुदेव भी उन्हीं लाचार भारतीयों में से एक थे, परन्तु उन्हें अंग्रेजों की गुलामी पसंद नहीं थी.

इसलिए उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. इस विरोध को असरदार करने के लिए फड़के ने चौराहों पर थाली और ढ़ाेल बजाकर जन चेतनाओं में जान डालना शुरू कर दिया.

हालांकि लोगों की चुप्पी ने उनकी कोशिशों पर पानी फेर दिया. अंग्रेजी हुकूमत के आगे लोग नतमस्तक हो चुके थे.

उस समय अंग्रेजों का विरोध करने का मतलब जान हथेली पर लेना था. इसलिए लोग सब कुछ जानते हुए भी खामोश हो चुके थे.

उधर फड़के द्वारा किया गया विरोध गोरों के गले नहीं उतर रहा था. यहीं से शुरू हुई वासुदेव बलवंत फड़के और ब्रिटिश हुकूमत के बीच आर-पार की लड़ाई…

Vasudev Started The Rebellion Against British (Pic: flickr)

अंग्रेजों के विरोध पर तब मिलती थी ‘मौत’

अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर किये गए जुल्म की दास्तान बहुत लंबी है. आजादी की लड़ाई के समय भारत के वीर सपूतों ने जिस तरह से देश को आजाद कराया, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है.

ब्रिटिश शासन के खिलाफ जाने वालों को मौत के घाट उतार दिया जाता था. इसकी मुख्य वजह यह थी कि उनके पास तमंचे, गोला-बारूद और अन्य हथियारों की भरमार थी. जिसकी वजह से भारत के लोग अंग्रेजों के आगे सिर झुकाकर गुलामी करने के लिए मजबूर थे.

उन दिनों गणेश जोशी और महादेव गोविंद रानडे जैसे समाजसेवियों की विचारधाराओं ने वासुदेव को काफी प्रभावित किया.

वह लोगों को अंग्रेजों की गुलामी करने से मना करते थे. लोग उनका साथ देने की बात तो कहते पर अंग्रेजों का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे.

वासुदेव समझ चुके थे कि उनके खुले विरोध का कोई असर नहीं होने वाला. अब वह ऐसे मौके की तलाश में थे जब उनका विरोध गोरों पर सीधा वार करता.

प्राकृतिक आपदा और अंग्रेजों के ‘जुल्म’

आजादी की लड़ाई के बीच ही प्राकृतिक आपदा का कहर ऐसा बरपा कि भयंकर अकाल पड़ गया. महाराष्ट्र समेत कोंकण प्रदेश और अन्य इलाकों में सूखे ने तबाही मचा दी.

भयंकर सूखे ने लोगों को मरने पर मजबूर कर दिया. अंग्रेजों ने लोगों के खून पसीने की कमाई और अन्न पानी से अपना राजकोष पहले ही भर लिया था. आपदा को देख गोरों ने लोगों को अन्न देने से मना कर दिया और उन पर जुल्म ढ़ाने लगे.

अंग्रेजों द्वारा लोगों पर हो रहे जुल्म देख वासुदेव हैरान हो गए. उन्होंने लोगों को आवाज उठाने की बात कही पर लोगों पर कोई असर नहीं हुआ.

वासुदेव ने लक्ष्य बनाया कि वह अंग्रेजों का हर तरह से विरोध करेंगे. इसलिए उन्होंने गोरिल्ला युद्ध की नीति अपना कर गोरों पर वार किये जाने की योजना तैयार की.

Maharashtra Drought Made Villagers Life Miserable (Representative Pic: mediaindia)