रानी दुर्गावती: मुगल सेना को खदेड़ने वाली ‘वीरांगना’

 

एक वक्त था जब भारतीय इतिहास को रानी लक्ष्मी बाई, रानी अबंतिका बाई लोधी, झलकारी देवी, रानी चेन्नम्मा, रानी तेजबाई जैसी सैंकड़ों वीरांगनाओं ने अपने रक्त से लिखा था.

तब जंग केवल अधिकार की ही नहीं, सम्मान की भी थी.

वीरांगनाओं की इस सूची में एक नाम सम्मान से जोड़ा जाता है और वह है गोंडवाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती का नाम!

जिनका नाम ही शक्ति का पर्याय हो, भला वह साहस की गाथा कैसे न लिखतीं. शायद उनके पिता को पता था कि वे एक दिन दुर्गा रूप धरकर दुश्मनों का संहार करेंगी, शायद इसीलिए उन्हें देवी की संज्ञा दी गई.

रानी दुर्गावती के शौर्य की गाथा भले ही फिल्मी पर्दे पर अभी न उतरी हो लेकिन इतिहास के पन्नों में ये स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है.

तो आइए जानते हैं उस वीरांगना के बारे में, जिन्होंने अकेले ही पूरी मुगल फौज को गीदड़ों की तरह रौंद डाला था–

दुर्गावती को युद्ध में जीता गया!

5 अक्टूबर 1524 ई. को कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के महल में दुर्गा अष्टमी की विशेष तैयारियां हो रहीं थीं. तभी उन्हें पुत्री जन्म की खुशखबरी मिली. चूंकि राजा मां दुर्गा के भक्त थे इसलिए उन्होंने बेटी का नाम दुर्गावती रखा.

राजा ने अपनी बेटी को बचपन से ही शस्त्र शिक्षा दी. दुर्गावती अपने पिता के साथ शिकार पर जाया करती थीं. इसी दौरान उन्होंने शिकार करने की बारीकियों को समझा. उन्होंने अपने पिता से ही घुड़सवारी करना भी सीखा.

राजकुमारी दुर्गावती जितनी खूबसूरत थीं, उतनी ही धारदार उनकी तलवारबाजी भी थी. इसके अलावा वे भाला चलाने में भी माहिर थीं. दुर्गावती की ख्याति बहुत कम समय में ही आसपास के राज्यों में फैल गई थी.

यह ख्याति धीरे-धीरे गढ़ा मंडला जिले के शासक संग्राम सिंह के कानों में पड़ी. वे चाहते थे कि दुर्गावती का विवाह उनके बेटे दलपत शाह से हो जाए, ताकि उनका राज्य और ज्यादा सशक्त बन सके.

इसी उद्देश्य से उन्होंने 1542 ईस्वी. में कीर्तिसिंह के पास बेटे का विवाह प्रस्ताव भिजवाया. कीर्ति सिंह राजपूत थे जबकि संग्राम सिंह की जाति गोंड थी लिहाजा राजा ने विवाह प्रस्ताव अ​स्वीकार कर दिया. इसके बाद संग्राम सिंह ने खुद कीर्ति सिंह से मुलाकात की पर चंदेल राजा अपनी जिद पर अड़े रहे. आखिर संग्राम सिंह ने शर्त रखी कि यदि गोंड होने के कारण उनकी शक्ति को कम आंका जा रहा है तो वे युद्ध करेंगे. यदि युद्ध में चंदेल राजा पराजित होते हैं तो दुर्गावती का विवाह दलपत शाह से किया जाएगा.

राजा कीर्ति सिंह ने प्रस्ताव को स्वीकार किया और आखिर दोनों राजाओं ने अपनी सेना के साथ युद्ध किया. इस जंग में संग्राम सिंह की जीत हुई. कीर्तिसिंह ने अपनी हार स्वीकार की और खुशी-खुशी रानी दुर्गावती का विवाह दलपत शाह के साथ कर दिया.

इस विवाह के साथ ही चंदेल वंश का गोंड राज्य के साथ गठबंधन हो गया. विवाह के एक साल बाद महारानी दुर्गावती ने एक पुत्र वीर नारायण को जन्म दिया. इसके लगभग 4 साल बाद ही दलपत शाह की तबियत खराब हो गई वैद्य कुछ इलाज कर पाते इसके पहले ही उनकी मृत्यु हो गई.

रानी दुर्गावती अपने पुत्र नारायण के साथ अकेली रह गईं. राज्य और परिवार का दवाब था इसलिए उन्होंने वीर नारायण का राजतिलक कर उसे गद्दी पर बिठाया और खुद शासन संभालना शुरू कर दिया.

Valiantly Warrior Queen Rani Durgavati. (Pic: hinduhistory)

…और दिल्ली तक पहुंची रानी की ख्याति

रानी दुर्गावती की धन संपदा, शौर्य और खूबसूरती की ख्याति मालवांचल के सूबेदार बाज बहादुर के कानों में पड़ी. उसने राज्य की संपदा हड़पने के उद्देश्य से गोंड राज्य पर हमला किया.

इस युद्ध में उसके चाचा फतेहा खां को खुद रानी ने मौत के घाट उतार दिया. जिसके बाद वह अपनी सेना लेकर वापस भाग गया. लेकिन बदला लेने की नीयत से उसने दोबारा सीधे रानी के महल पर हमला कर दिया. रानी ने इस बार भी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया और उसकी पूरी सेना को खत्म कर दिया. नतीजतन बाज बहादुर मलवांचल भी हार गया और रानी दुर्गावती का मालवा तक राज्य कायम हो गया. इस युद्ध की गूंज दिल्ली तक पहुंची.

तब दिल्ली के तख्त पर अकबर काबिज थे. उनका एक खास मित्र मानिकपुर का सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां उर्फ आसफ खां रानी दुर्गावती के शौर्य और रूप से परिचित था. उसी ने अकबर के कानों में गोंड राज्य और रानी के बारे में जानकारी पहुंचाई.

एक तरह से आसफ खां ने अकबर को उकसाया, ताकि वह राज्य पर हमला करें और रानी को अपने हरम में रखते हुए बाकि धन-संपदा उसके हवाले कर दें.

Malwa ruler Baz Bahadur. (Pic: twitter)