जब-जब चंबल के बीहड़ों की बात होती है, तो लोग डर से कांपने लगते हैं.
आज तक भी चंबल में जाने से पहले हर इंसान कई बार सोचता है कि कहीं वहां कोई डाकू न मिल जाए… या कुछ हादसा न हो जाए!
आखिर चंबल की कहानी ही कुछ ऐसी है. इस धरती पर जितने ज्यादा डाकू पैदा हुए हैं, शायद ही कहीं और हुए हों.
बीहड़ों और जंगलों के बीच बसा ये इलाका खतरनाक डाकुओं को पनाह देता था.
डाकू मान सिंह ऐसा ही एक डेंजरस नाम था.
बस फर्क इतना था कि वह अपने लूट के लिए कुख्यात होने की बजाए, गरीबों की मदद के लिए विख्यात रहा. अपने कामों के लिए वह चंबल और उसके आसपास के कुछ इलाकों में भगवान की तरह पूजा जाता रहा.
यहां तक कि लोगों ने उसके नाम का एक मंदिर तक बनवाया.
जानकर हैरानी होती है और विश्वास करना मुश्किल कि आखिर एक डाकू को लोग भगवान की तरह कैसे पूज सकते हैं? पर चूंकि यह सच है, इसलिए इसके पीछे की असल कहानी को जानना दिलचस्प हो जाता है–
बीहड़ों पर करते थे जो राज… नाम था ‘मानसिंह’
मान सिंह का जन्म आगरा के गांव खेरा राठौर के एक बड़े राजूपत परिवार में हुआ. उनका परिवार राजपूत राजाओं का वंशज था, जोकि चंबल में रहता था. वही चंबल जहां दूर-दूर तक घने जंगल और बीहड़ दिखाई देते हैं. कहते हैं कि मान सिंह के घर की हालत बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी, लेकिन हालत इतनी भी खराब नहीं थी कि वह डकैत बन जाएँ!
किन्तु परिस्थितयों ने उन्हें इस ओर धकेल दिया. उन्होंने हथियार क्यों उठाए इसका जवाब खोजने की कोशिश की जाती है तो एक कहानियां पढ़ने को मिलती है. इस कहानी की मानें तो मान सिंह की पुस्तैनी जमीन पर आसपास के कुछ साहूकारों ने अवैध कब्जा कर लिया था.
मान सिंह ने इसका खूब विरोध किया, लेकिन वह सीधे तरीके से कामयाब नहीं हो पाए. ऊपर से उन्हें इसके चलते परेशानियों का सामना करना पड़ा. अंत में जब उनसे नहीं सहा गया तो उन्होंने अपनी जमीन वापस लेने के लिए हथियार उठा लिए और बागी हो गए.
वैसे भी चम्बल को बागियों की पनाहगाह कहा जाता रहा है.
Most Feared Dacoit Man Singh (Pic: dnaindia)