भारत-पाकिस्तान के बीच भले ही युद्ध विराम चल रहा हो, लेकिन पाकिस्तान कभी आतंकियों की घुसपैठ कराकर भारत में आतंकी हमले कराता है तो कभी भारत ऐसे आतंक को खत्म करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई करता है.
1947, 1965, 1971 और 1999 में भारत पाकिस्तान की कमर तोड़ चुका है. शायद इसी का नतीजा है कि इसके बाद कभी पाकिस्तान ने सीधे मुकाबले की हिम्मत नहीं की. यह सभी लड़ाईयां जंगलों में, पहाड़ों की चोटियों, रेतीले और बर्फीले मैदानों में लड़ी गईं पर इनमें से खास है 1971 की वो जंग जिसे पानी पर लड़ा गया.
जी हां! 1947 और 1965 के बाद 1971 में यह तीसरा मौका था जब भारत-पाक सीमा सैनिकों के लहू से लाल हुई थी. इसी जंग में पाकिस्तान को ‘बांग्लादेश’ के रूप में बड़ा झटका लगा था. यह जंग कई मायनों में खास थी. अव्वल वजह यह थी कि पहली बार भारत और पाकिस्तान की नौ-सेनाएं आमने सामने थीं. जाहिर सी बात है कि यह जंग भी भारत ने अपने नाम की.
दो रात चली इस लड़ाई को भारतीय नौसेना द्वारा ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ नाम दिया गया.
यह जंग इस लिहाज से भी खास थी कि भारत ने पहली बार पाकिस्तान के खिलाफ एंटी शिप मिसाइल का इस्तेमाल किया था. तो चलिए जानते हैं ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ की पूरी कहानी–
सर्वश्रेष्ठ भारतीय नौसेना
भारतीय नौसेना की शुरुआत 5 सितंबर 1612 को हुई थी जब ईस्ट इंडिया कंपनी के युद्धपोतों का पहला बेड़ा सूरत बंदरगाह पहुंचा. फिर 1934 में रॉयल इंडियन नेवी की स्थापना हुई और 1947 में भारत के आजाद होने के बाद आधिकारिक रूप से ‘भारतीय नौसेना’ की घोषणा हुई.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नौसेना में केवल 8 युद्धपोत थे पर धीरे-धीरे नौसेना की शक्ति को बढ़ाया गया और इसमें आईएनएस विक्रमादित्य, फ्रिगेट, लड़ाकू जलपोत, पहरा देने वाले जहाज और परमाणु पनडुब्बियों समेत कई रक्षक नौकाएं शामिल की गईं.
आज भारतीय नौसेना ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, इंडोनेशिया, म्यांमार, रूस, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान के साथ युद्ध अभ्यास करती है और विश्व की सबसे शक्तिशाली नौसेनाओं में इसकी गिनती होती है.

INS Viraat Aircraft Carrier. (Pic: defenceforumindia)
इशारों में हो गई सारी बात…
1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच जमीन और आसमान में जंग जारी थी. ऐसे में अब बारी थी नौसेना की. इससे पहले कभी भी नौसेना ने पाकिस्तान की नौसेना से सीधे जंग नहीं की थी, इसलिए यह एक बड़ा प्रयोग था.
अक्तूबर 1971 में तत्कालीन नौसेना अध्यक्ष एडमिरल एसएम नंदा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने पहुंचे. प्रधानमंत्री ने नौसेना की तैयारियों का जायजा लेने के लिए उन्हें खासतौर पर बुलाया था. जाहिर था कि वे तीसरी जंग को जीतने के हरसंभव मार्ग को तैयार कर रहीं थीं.
नंदा ने कहा कि सेना अपने साजो-सामान के साथ तैयार है, बस आदेश की देरी है. इंदिरा गांधी ने राहत की सांस ली. पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने अपनी किताब ‘कॉरेज एंड कन्वीक्शन’ में इस मुलाकात का जिक्र किया गया है. उन्होंने लिखा कि ‘नंदा ने प्रधानमंत्री से पूछा कि यदि भारतीय नौसेना कराची पर हमला करती है तो क्या कोई सियासी मसला हो सकता है?
इंदिरा गांधी ने जवाब में कहा कि ऐसा आप क्यों पूछ रहे हैं? नंदा ने कहा कि भारतीय नौसेना को 1965 के युद्ध के दौरान आदेश दिए थे कि यदि उन्हें जंग में उतना पड़ा तो वे भारतीय समुद्री सीमा से बाहर जाकर कोई कार्रवाई नही करेंगे. नंदा ने कहा कि यह आॅर्डर आज भी उन पर लागू है!
श्रीमती गांधी ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, “एडमिरल, लड़ाई लड़ाई होती है, यदि हर कोई अपनी हद में रहे तो फिर जंग ही नहीं होगी.” नंदा को अपना जवाब इशारों-इशारों में मिल गया था.
उन्होंने इंदिरा गांधी को धन्यवाद कहा और चले गए!

Indira Gandhi in Office. (Pic: forbesindia)
लिफाफे में कैद थी ‘हमले की योजना’
इंदिरा गांधी ने इस मुलाकात के कुछ दिनों बाद नौसेना अध्यक्ष को एक सील लगा लिफाफा भिजवाया. नंदा ने इसे खोला तो पत्र में कराची पर हमले की योजना बनाने की बात लिखी थी. नंदा ने खुद इस योजना को तैयार किया.
उस दौरान कराची बंदरगाह पाकिस्तान के लिए बेहद खास था. देश की अर्थव्यवस्था में इसका अच्छा योगदान था. इसके अलावा पाकिस्तान नौसेना का पूरा गढ़ यहीं था. नंदा ने कराची पर हमले की योजना तैयार कर एक बंद लिफाफा एक दिसंबर 1971 को नौसेना के युद्धपोतों तक पहुंचा दिया.
वेस्टर्न फ़्लीट 2 दिसंबर को मुंबई से निकल गया.
योजना यह थी कि भारतीय नौसैनिकों का बेड़ा दिन में कराची से 250 किलोमीटर की दूरी पर वृत्त आकार में तैनात होगा. शाम होने तक बेड़ा धीरे-धीरे बढ़ते हुए कराची से 150 किलोमीटर की दूरी पर पहुंच जाएगा और रात होने का इंतजार किया जाएगा.
भारतीय नौसेना रात के अंधेरे में हमला करेगी. 150 किमी की दूरी इसलिए तय की गई ताकि पाकिस्तानी बमों से भारतीय नौसेना के युद्धपोतों को बचाया जा सके. हमला करने के लिए ओसा क्लास मिसाइल बोट का इस्तेमाल किया जाएगा. इन बोट्स को यदि चलाकर ले जाया जाता है तो शोर और पानी में हलचल होगी, जिससे पाकिस्तानी नौसेना को भनक लग सकती है. इसलिए बोट को नाइलोन की रस्सियों से खींचकर ले जाया जाएगा.
इस तरह की तीन बोट निपट, निर्घट और वीर को तैयार किया गया और हर बोट में चार मिसाइलें रखी गईं. इसके पीछे लड़ाकू जहाज ‘आईएनएस किल्टन’ को भी तैनात किया गया. इस पूरे आॅपरेशन की कमांड स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव को दी गई. उनके साथ कमांडर विजय जेरथ भी आॅपरेशन का मुख्य हिस्सा बने.

Indian Navy Frigade in Arabian Sea. (Pic: misucell)
आखिर आ गया ‘वो दिन’
4 दिसम्बर 1971 को रात 10 बजकर 40 मिनट पर कराची से 40 किलोमीटर दूर यादव ने अपने रडार पर कुछ हरकत महसूस की. यादव ने निर्घट को आदेश दिया कि वह अपना रास्ता बदलकर पाकिस्तानी जहाज़ पर हमला करे. बिना देर किए निर्घट ने 20 किलोमीटर की दूरी से पाकिस्तानी विध्वंसक पीएनएस ख़ैबर पर मिसाइल दाग दी.
पाकिस्तानी फौजी यह नहीं समझ सके कि उनकी ओर आने वाला यह तेज प्रकाश कोई युद्ध विमान है या मिसाइल और उन्होंने भी अपनी तोपें तैयार करना शुरू ही किया था कि तब तक मिसाइल पाकिस्तानी जहाज से जा टकराई.
पहले हमले के बाद जरा भी देर न करते हुए यादव ने 17 किलोमीटर की दूरी से ख़ैबर पर एक और मिसाइल चलाने का आदेश दिया. दूसरी मिसाइल के टकराते ही खैबर की गति शून्य हो गई. 11 बजकर 20 मिनिट पर जहाज पूरी तरह जलने लगा और देखते ही देखते पानी में डूब गया. जब खैबर डूबा तो वह 35 नॉटिकल मील दूरी पर था.
इसके बाद किल्टन को निर्घट के बाजू में तैनात कर दिया गया. अगला आदेश निपट को मिला. निपट ने पहली मिसालइल पाकिस्तानी युद्धपोत वीनस चैलेंजर पर दागी और तत्काल ही दूसरी मिसाइल से शाहजहां को निशाना बनाया गया. वीनस पानी में डूब गया और शाहजहां को भारी नुकसान हुआ.
निपट ने तीसरी मिसाइल दागी और इस बार तेल के दो टैंकरों को निशाना बनाया गया. टैंकरों में भीषण आग लग गई. पाकिस्तानी नौसेना जवाबी हमला कर पाती इसके पहले ही वीर ने पाकिस्तानी माइन स्वीपर पीएन एस मुहाफ़िज़ पर एक मिसाइल चलाकर उसे नष्ट कर दिया.
भारतीय नौसेना की रात अच्छी गुजरी थी. आखिर हमले में कराची हार्बर फ्यूल स्टोरेजपूरी तरह तबाह हो गया था.

Indian Navy attack in Karachi. (Pic: navy)
…और दुश्मन हुआ खाक!
कराची हार्बर फ्यूल स्टोरेज के तबाह हो जाने से पाकिस्तान नौसेना की कमर टूट गई थी. अचानक हुए इस हमले में सेना ने अपने जवानों को तो खोया ही साथ ही बड़े जहाजों से भी हाथ धोना पड़ा. इसके बाद सेना ने कुछ नए युद्धपोतों को उतार दिया.
पश्चिमी बेड़े के फ़्लैग ऑफ़िसर कमांडिंग एडमिरल कुरुविला ने कराची पर दूसरा मिसाइल बोट हमला किया. आईएनएस विनाश पर कमांडिंग ऑफ़िसर विजय जेरथ के नेतृत्व में 30 नौसैनिक कराची पर इससे भी बड़े हमले की तैयारी में थे.
तभी बोट की बिजली फ़ेल हो गई और कंट्रोल ऑटोपाइलट पर चला गया. जेरथ बैटरी से मिसाइल हमला करना चाहते थे पर राडार पर निशाना पक्का नहीं दिख रहा था. रात 11 बजे जब बिजली वापस आई तब जेरथ की नजर कीमारी तेल डिपो पर गई.
मिसाइल को जांचने-परखने के बाद उन्होंने रेंज को मैनुअल और मैक्सिमम पर सेट किया और मिसाइल फ़ायर कर दी. इस फायरिंग ने पानी में प्रलय मचा दिया. आग की लपटें इतनी ऊंची थीं कि उन्हें 60 किमी दूर तक देखा जा सकता था.
आॅपरेशन ट्राइडेंट सफल हुआ था.
जेरथ ने हैडक्वार्टर में संदेश भेजा, ‘फ़ोर पिजंस हैप्पी इन द नेस्ट. रिज्वाइनिंग.’ उनको वहां से जवाब मिला, ’एफ़ 15 से विनाश के लिए: इससे अच्छी दिवाली हमने आज तक नहीं देखी.
अगले दिन दुनिया भर के अखबारों में खबर छपी और इसे एशिया का सबसे बड़ा बोनफ़ायर करार दिया गया. कहा जाता है कि यह आग 7 दिन और 7 रातों तक जलती रही और इसका धुंआ कराची के आसमान पर तीन दिन तक छाया रहा.

Indian Navy attack on Karachi Port. (Pic: misucell)
दुश्मन को ख़ाक में मिलाने की भारतीय सेनाओं की ताकत एक बार फिर साबित हो गयी थी.