ऊदा देवी: 30 अंग्रेजों को अकेले मार गिराने वाली वीरांगना

 

भारतीय इतिहास में दर्ज लड़ाईयों में महिलाओं का हमेशा ही अहम किरदार रहा!

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, मातंगिनी हाजरा, लक्ष्मी सहगल समेत तमाम महिलाओं की बहादुरी के किस्से इतिहास की किताबों में दर्ज हैं.

ऐसी वीरांगनाओं की फेहरिस्त में एक नाम ऊदा देवी का भी है. ऊदा देवी पासी जाति से ताल्लुक रखती थीं. उन्होंने अकेले 30 से अधिक ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था.

…तो आइये रूबरू होते हैं ऊदा देवी की दिलेरी की दास्तान से–

पति से प्रेरणा ले महिला दस्ते में हुईं भर्ती

ऊदा देवी का जन्म शामों के लिए मशहूर अवध के उजरियांव में हुआ था. उनके जन्म की ठीक-ठीक तारीख कहीं दर्ज नहीं है, इसलिए वह कब पैदा हुईं यह बताना मुश्किल है. वक्त के साथ-साथ वह बड़ी हुईं और फिर उनके साथ वहीं हुआ, जोकि उस जमाने के लिए आम बात थी.

कम उम्र में ही उनकी शादी मक्का पासी नाम के युवक से कर दी गयी. इस तरह वह ससुराल पहुंच गई, जहां उन्हें एक जगरानी नाम का एक नया नाम मिला.

यह साल 1847 के वक्त के किसी टुकड़े की बात रही होगी. फरवरी का महीना था. सर्दी खुद को समेटकर जाने की तैयारी में थी. वसंत ऋतु दहलीज पर खड़ी थी. तभी अमजद अली शाह के पुत्र वाजिद अली शाह छठवें नवाब के बतौर अवध व लखनऊ पर नये-नये गद्दीनशीं हुए. सत्ता संभालते ही उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए रंगरूटों की भर्ती करनी शुरू कर दी.

इसी क्रम में ऊदा देवी के पति मक्का पासी वाजिद अली शाह के दस्ते में शामिल हो गये. कहते हैं कि मक्का पासी के देश की आजादी के लिए शाह के दस्ते में शामिल होता देख ऊदा देवी को भी प्रेरणा मिली और वह वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में भर्ती हो गईं.

Freedom Fighter Uda Devi (Pic: samyakprakashan)

पति की शहादत से बन गयीं घायल शेरनी!

वाजिद अली शाह की ताजपोशी के एक दशक बाद का वक्त!

यानी 1857 का साल. हिन्दुस्तान की आजादी का पहला गदर शुरू हुआ था. सैनिक विद्रोह की शक्ल में. अलग-अलग जगहों पर देश के वीर सपूत अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे.

10 जून सन 1857 का यह वाकया है. अंग्रेजों ने अवध पर हमला कर दिया था. लखनऊ के इस्माइलगंज में ब्रिटिश हुकूमत की सैनिक टुकड़ी से मौलवी अहमद उल्लाह शाह के नेतृत्व में एक पलटन लड़ रही थी. इस पलटन में ही मक्का पासी भी थे.

अंग्रेजों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए. यह खबर जैसी ही ऊदा देवी तक पहुंची वह घायल शेरनी की मानिंद दहाड़ने लगीं. उन्होंने अंग्रेजों से इसका प्रतिशोध लेने की ठान ली.

वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में तो वह पहले से ही थीं. पति की शहादत के बाद वह इतनी खूंखार बन गयी कि उन्होंने बेगम हजरत महल की मदद से महिला लड़ाकों का पृथक बटालियन बना लिया. बेगम हजरत महल ने लखनऊ में1857 की क्रांति को नेतृत्व दिया था. उनकी अलग कहानी है. इस पर चर्चा फिर कभी…

Begum Hazrat Mahal (Pic: drawinglics)