“धिंगाणानो ढोल”

कवि श्री काळुभा बुधसी रचीत रचना “धिंगाणानो ढोल”

धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे.
मरदा जळ मापवा लागयो रे.
(अने) सुतेला कैक जोराळा … धैनमांथी एे जगाडवा लाग्यो रे.
धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे…

मोजु (तो) मरणनी लीधी रे.
तोये रे सलाम नो कीधी रे.
खलके उुभी खांभीयु अणनम … आभ समो आज ओपतो राबो रे.
धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे.

नथी हवे जीववुं जाजु रे.
शोभे नई खूमाण ने आवुं रे.
कांडाबळथी कुंडला लेवु रे. … एेम बोल्या खाय खोंखारो रे.
धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे.

शक्ति समशेर छे साथे रे.
कोके लीधी बरछी हाथे रे.
कायर तो घर वाहेंथी … आज भुंडे मुख भागवा लाग्यो रे.
धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे.

अबळा कोई बेनडी काजे रे.
माटी तुं सावजडा थाजे रे.
एेवु बोली डांडीयुं अेनी …आज वीरोने तागवा लाग्यो रे.
धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे.

मुंगी आज गावडी काजे रे.
हाल्यो विर मोतनी वाटे रे.
वरमाळा आज मुकीने … सुख सघळा त्यांगवा लाग्यो रे.
धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे.

गरवी जुजरातनी गाथा रे.
लीलुडा ज्यां खपीया माथा रे.
“काळु” चारण ने के छे … ढोल धरमी ईतिहासनो वातो रे.
धिंगाणानो ढोल ज्यां वाग्यो रे…

रचना कविश्री काळुभा बुधसी (गढवी)
गाम :- ढसा जंकशन Mo. 9737232037

Author: Jaydip Bhikhubhai Udhas

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